Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas :  तुलसी दास जी मानस में श्रीराम चरित की कथा का प्रारम्भ करते हैं. सभी गणमान्य व खलों की वंदना करने के बाद वह मानस के अगले सोपान पर चलते हैं. वह कहते हैं कि रामचरित मानस के तो अनन्त गुण है. इससे सभी जीवों का कल्याण होता है. इसी क्रम में मानस मंत्र में आगे चलते हैं-  


राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार ⁠। 


सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार ⁠


श्री रामचन्द्र जी अनन्त हैं, उनके गुण भी अनन्त हैं और उनकी कथाओं का विस्तार भी असीम है. अत एव जिनके विचार निर्मल हैं, वे इस कथा को सुनकर आश्चर्य नहीं मानेंगे.


एहि बिधि सब संसय करि दूरी । 


सिर धरि गुर पद पंकज धूरी ⁠।⁠। 


पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी । 


करत कथा जेहिं लाग न खोरी ⁠।⁠। 


इस प्रकार सब संदेहों को दूर करके और श्री गुरुजी के चरण कमलों की रज को सिर पर धारण कर के मैं पुनः हाथ जोड़ कर सब की विनती करता हूँ, जिससे कथा की रचना में कोई दोष स्पर्श नहीं कर पाता है.  


सादर सिवहि नाइ अब माथा । 


बरनउँ बिसद राम गुन गाथा ⁠।⁠। 


संबत सोरह सै एकतीसा । 


करउँ कथा हरि पद धरि सीसा ⁠।⁠। 


अब मैं आदर पूर्वक श्री शिव जी को सिर नवाकर श्री रामचन्द्र जी के गुणों की निर्मल कथा कहता हूँ। श्री हरि के  चरणों पर सिर रखकर संवत् 1631 में इस कथा का आरम्भ करता हूँ. 


नौमी भौम बार मधुमासा । 


अवधपुरीं यह चरित प्रकासा ⁠।⁠। 


जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं । 


तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं ⁠।⁠। 


चैत्र मास की नवमी तिथि मंगलवार को श्री अयोध्या जी में यह चरित्र प्रकाशित हुआ। जिस दिन श्री राम जी का जन्म होता है, वेद कहते हैं कि उस दिन सारे तीर्थ वहाँ श्रीअयोध्या जी में चले आते हैं. 


असुर नाग खग नर मुनि देवा । 


आइ करहिं रघुनायक सेवा ⁠।⁠। 


जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना । 


करहिं राम कल कीरति गाना ⁠।⁠। 


असुर, नाग, पक्षी, मनुष्य, मुनि और देवता सब अयोध्या जी में आकर श्री रघुनाथ जी की सेवा करते हैं. बुद्धिमान लोग जन्म का महोत्सव मनाते हैं और श्रीराम जी की सुन्दर कीर्तिका गान करते हैं.


मज्जहिं सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर ⁠। 


जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर ⁠।⁠।⁠ 


सज्जनों के बहुत से समूह उस दिन श्री सरयू जी के पवित्र जल में स्नान करते हैं और हृदय में सुन्दर श्याम शरीर श्री रघुनाथ जी का ध्यान करके उनके नाम का जप करते हैं. 


दरस परस मज्जन अरु पाना । 


हरइ पाप कह बेद पुराना ⁠।⁠। 


नदी पुनीत अमित महिमा अति । 


कहि न सकइ सारदा बिमल मति ⁠।⁠। 


वेद पुराण कहते हैं कि श्री सरयू जी का दर्शन, स्पर्श, स्नान और जलपान पापों को हरता है। यह नदी बड़ी ही पवित्र है, इसकी महिमा अनन्त है, जिसे विमल बुद्धि वाली सरस्वती जी भी नहीं कह सकतीं.


राम धामदा पुरी सुहावनि । 


लोक समस्त बिदित अति पावनि ⁠।⁠। 


चारि खानि जग जीव अपारा । 


अवध तजें तनु नहिं संसारा ⁠।⁠। 


यह शोभायमान अयोध्यापुरी श्री रामचन्द्र जी के परम धाम की देने वाली है, सब लोकों में प्रसिद्ध है और अत्यन्त पवित्र है। जगत्‌ में अण्डज, स्वेदज, उद्भिज्ज और जरायुज चार प्रकार के अनन्त जीव हैं, इनमें से जो कोई भी अयोध्या जी में शरीर छोड़ते हैं वे फिर संसार में नहीं आते यानी जन्म मृत्यु के चक्कर से छूटकर भगवान के परम धाम में निवास करते हैं. 


सब बिधि पुरी मनोहर जानी । 


सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी ⁠।⁠। 


बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा । 


सुनत नसाहिं काम मद दंभा ⁠।⁠। 


इस अयोध्यापुरी को सब प्रकार से मनोहर, सब सिद्धियों की देने वाली और कल्याण की खान समझकर मैंने इस निर्मल कथा का आरम्भ किया, जिसके सुनने से काम, मद और दम्भ नष्ट हो जाते हैं.  


रामचरितमानस एहि नामा । 


सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ⁠।⁠। 


मन करि बिषय अनल बन जरई । 


होइ सुखी जौं एहिं सर परई ⁠।⁠। 


इसका नाम रामचरितमानस है, जिसके कानों से सुनते ही शान्ति मिलती है. मन रूपी हाथी विषय रूपी अग्नि में जल रहा है, वह यदि इस राम चरितमानस रूपी सरोवर में आ पड़े तो सुखी हो जाय. 


रामचरितमानस मुनि भावन । 


बिरचेउ संभु सुहावन पावन ⁠।⁠। 


त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । 


कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ⁠।⁠। 


यह राम चरित मानस मुनियों का प्रिय है, इस सुहावने और पवित्र मानस की शिवजी ने रचना की। यह तीनों प्रकार के दोषों, दुःखों और दरिद्रता को तथा कलियुग की कुचालों और सब पापों का नाश करने वाला है. 


रचि महेस निज मानस राखा । 


पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा ⁠।⁠। 


तातें रामचरितमानस बर। 


धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर ⁠।⁠। 


श्री महादेव जी ने इसको रचकर अपने मन में रखा था और सुअवसर पाकर पार्वती जी से कहा। इसी से शिव जी ने इसको अपने हृदय में देखकर और प्रसन्न होकर इसका सुन्दर  रामचरितमानस  नाम रखा. 


बरनउं रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ, ⁠राम चरित्र सुनने से नष्ट हो जाते हैं कलियुग के पाप


महामंत्र जोइ जपत महेसू, महादेव स्वयं जपते हैं राम नाम, राम नाम जपने से होता है कल्याण