Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas: बालकाण्ड में सबकी वंदना करने के बाद तुलसीदास जी राम नाम की महिमा का बहुत ही दिव्य वर्णन करते हैं. नाम महिमा को कई प्रकार से तुलना करते हुए बताया है. पारलौकिक तत्वों से लेकर धान से तुलना करते हुए बहुत ही अद्भुत व्याख्या की है. आज हम लोग राम नाम महिमा को समझते हैं-
बंदउँ नाम राम रघुबर को।
हेतु कृसानु भानु हिमकर को⁠।⁠। 
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। 
अगुन अनूपम गुन निधान सो⁠।⁠। 


मैं श्री रघुनाथ जी के नाम ‘राम’ की वन्दना करता हूँ, जो अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा रूप हैं. ‘र’ ‘आ’ और ‘म’ बीज है। वह राम नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिव रूप है। वह वेदों का प्राण है, निर्गुण, उपमा रहित और गुणों का भंडार है ⁠।⁠।⁠


महामंत्र जोइ जपत महेसू । 
कासीं मुकुति हेतु उपदेसू ⁠।⁠। 
महिमा जासु जान गनराऊ। 
प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ।⁠। 


जो महामंत्र है, जिसे महेश्वर श्री शिवजी जपते हैं और उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है, तथा जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं, जो इस राम नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं ⁠।⁠।⁠


जान आदिकबि नाम प्रतापू । 
भयउ सुद्ध करि उलटा जापू ⁠।⁠। 
सहस नाम सम सुनि सिव बानी । 
जपि जेईं पिय संग भवानी ⁠।⁠। 


आदि कवि श्री वाल्मीकि जी राम नाम के प्रताप को जानते हैं, जो उलटा नाम  मरा, मरा  जपकर पवित्र हो गये। श्री शिवजी के इस वचन को सुनकर कि एक राम-नाम हजार नाम के समान है, पार्वती जी सदा अपने पति श्री शिवजी के साथ राम नाम का जप करती रहती हैं ⁠।⁠।⁠



हरषे हेतु हेरि हर ही को । 
किय भूषन तिय भूषन ती को ⁠।⁠। 
नाम प्रभाउ जान सिव नीको । 
कालकूट फलु दीन्ह अमी को ⁠।⁠। 


नाम के प्रति पार्वती जी के हृदय की ऐसी प्रीति देखकर श्री शिव जी हर्षित हो गये और उन्होंने स्त्रियों में भूषण रूप पार्वती जी को अपना भूषण बना लिया अर्थात् जैसे आभूषण शरीरमें पहना जाता है, वैसे ही इनको अंग में धारण करके अर्धांगिनी बना लिया. नाम के प्रभाव को श्री शिव जी भली भांति जानते हैं, जिस प्रभाव के कारण हलाहल जहर ने उनको अमृत का फल दिया ।⁠।⁠


दो०—


बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास। 
राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास।⁠।⁠ 


श्री रघुनाथ जी की भक्ति वर्षा ऋतु है, तुलसीदास  जी कहते हैं कि उत्तम सेवक गण सालि धान हैं. आयुर्वेद में पांच प्रकार के धानों में से यह एक प्रकार का धान है जो हेमन्त ऋतु में होता है। इसके भी अनेक भेद कहे जाते हैं। शालि या सालि धान को वासमती  भी कहते हैं। यह प्रायः जेठ मास में बोया जाता है। फिर श्रावण में उखाड़ कर रोपा जाता है। श्रावण-भादो की वर्षा इसकी जान है। यह अगहन के अंत या पौष के आरम्भ में पककर तैयार हो जाता है। यह धान बहुत बारीक और सुन्दर होता है। इसका चावल सबसे उत्तम माना जाता है। इसी प्रकार राम नाम के दो सुन्दर अक्षर सावन-भादो के महीने हैं.⁠ 


रघुपति चरन उपासक जेते, खग मृग सुर नर असुर समेते, श्रीराम चन्द्र जी के चरणों के सभी उपासक वंदनीय


गुर पितु मातु महेस भवानी, प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी