Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas :  गोस्वामी तुलसीदास जी ने  नाम को सब प्रकार से श्रेष्ठ सिद्ध किया है. वह लिखते हैं कि देखने में ‘नाम’ और ‘नामी’ दोनों  समान हैं और परस्पर प्रेम भी है दोनों अन्योन्याश्रय सम्बध से जकड़े हैं, किन्तु फिर भी प्रभु ‘नाम’ के अनुगामी हैं, पीछे-पीछे चलने वाले हैं. पीछे-पीछे चलने वाला इसलिए कहा है कि ‘नाम’ लेने से ईश्वर आता है. मान लीजिये किसी का ‘नाम’ ‘संजय’ है. अब ‘संजय’ संज्ञा और ‘संजय संज्ञा वाला व्यक्ति’ दोनों एक ही हैं. किन्तु जिस समय ‘संजय-संजय’ पुकारा जाएगा, उस समय ‘संजय’ पुकारने वाले के पास अवश्य ही आएगा. रूप नाम के अधीन है, इसका प्रमाण इसी ग्रन्थ में देख लीजिये. श्री हनुमान जी श्री रामचन्द्र जी को न पहचान सके, जब तक उन्होंने अपना नाम न बताया। यदि वह रूप देखकर पहचान गये होते तो यह प्रश्न न करते.  


समुझत सरिस नाम अरु नामी । 
प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी ।। 
नाम रूप दुइ ईस उपाधी। 
अकथ अनादि सुसामुझि साधी।। 


समझने में नाम और नामी दोनों एक से हैं, किन्तु दोनों में परस्पर स्वामी और सेवक के समान प्रीति है अर्थात नाम और नामी में पूरी एकता होने पर भी जैसे स्वामी के पीछे सेवक चलता है, उसी प्रकार नाम के पीछे नामी चलते हैं। प्रभु श्रीराम जी अपने ‘राम’ नाम का ही अनुगमन करते हैं, नाम लेते ही वहां आ जाते हैं. नाम और रूप दोनों ईश्वर की उपाधि हैं, भगवान के नाम और रूप दोनों अनिर्वचनीय हैं, अनादि हैं और  शुद्ध  बुद्धि से ही इनका स्वरूप जानने में आता है.


को बड़ छोट कहत अपराधू। 
सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू।। 
देखिअहिं रूप नाम आधीना। 
रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना।। 


इन नाम और रूप में कौन बड़ा है, कौन छोटा, यह कहना तो अपराध है. इनके गुणों का तारतम्य सुनकर साधु पुरुष स्वयं ही समझ लेंगे. रूप नाम के अधीन देखे जाते हैं, नाम के बिना रूप का ज्ञान नहीं हो सकता. 


रूप बिसेष नाम बिनु जानें। 
करतल गत न परहिं पहिचानें।। 
सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें। 
आवत हृदयँ सनेह बिसेषें।। 


कोई विशेष रूप बिना उसका नाम जाने हथेली पर रखा हुआ भी पहचाना नहीं जा सकता और रूप के बिना देखे भी नाम का स्मरण किया जाय तो विशेष प्रेम के साथ वह रूप हृदय में आ जाता है.


नाम रूप गति अकथ कहानी। 
समुझत सुखद न परति बखानी।। 
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। 
उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी।। 


नाम और रूप की गति की कहानी अकथनीय है. वह समझने में सुख दायक है, परन्तु उसका वर्णन नहीं किया जा सकता. निर्गुण और सगुण के बीच में नाम सुन्दर साक्षी है और दोनों का यथार्थ ज्ञान कराने वाला चतुर दुभाषिया है.


राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार। 
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर।।  


तुलसीदास जी कहते हैं, यदि तू भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहता है तो मुखरूपी द्वार की जीभ रूपी देहली पर राम नाम  रूपी मणि दीपक को  रखना चाहिए. यह सदा कल्याणकारी होता है. ⁠ 


आखर मधुर मनोहर दोऊ, बरन बिलोचन जन जिय जोऊ, राम के दोनों अक्षर मधुर और मनोहर



रघुपति चरन उपासक जेते, खग मृग सुर नर असुर समेते, श्री रामचंद्र जी के चरणों के सभी उपासक वंदनीय