Mahima Shanidev Ki: शनिदेव (Shani dev) के न्यायधिकारी बनने के बाद सृष्टि का सृजन शुरू हुआ. ब्रम्हाजी ने पृथ्वी की रचना की, जहां मानव की उत्पति हुई. मगर इस नई जाति (मानव) पर देवों का अधिकार होगा या दानवों का, इसके लिए दोनों पक्षों में द्वंद्व होने लगे. पौराणिक कथाओं के अनुसार इसका निर्णय लेने के लिए सूर्यलोक में एक सभा बुलाई गई. इसमें एक दूसरे पर आरोप लगाते हुए देवता और दैत्य आमने-सामने आ गए और सूर्यलोक रणभूमि में तब्दील हो गया. ऐसे में खुद महादेव ने दखल देकर इसे रुकवाया.

मान्यता है कि इस सभा में दैत्यों के प्रतिनिधि के तौर पर शनि देव शामिल हुए. जिन्होंने सुझाव दिया कि मानव जाति में देव और दानव दोनों के ही गुण होने चाहिए, क्योंकि हर प्राणी अपने चयन और निर्णय का फल प्राप्त करेगा. ऐसे में पृथ्वी पर देवों के साथ ही दानवों के गुण होने जरूरी हैं.

महादेव ने मानी बात, मनु-सतरूपा का सृजन हुआ पृथ्वी पर मानवों में देव और दैत्यों के अंश के सुझाव पर शनिदेव के मत से सहमत महादेव ने द्वंद्व रुकवा कर पृथ्वी सृजन की जिम्मेदारी खुद ले ली. इसके बाद ब्रह्माजी ने पृथ्वी का सृजन किया और मनु-सतरूपा की उत्पति की. मगर महादेव की रखी गई शर्त के मुताबिक सभा में देवों के पक्ष की हार के बाद सूर्यपुत्र यम को पृथ्वी के लिए निष्कासित होना पड़ा, जहां मनु और सतरूपा के अलावा देवों के अंश के तौर पर वह पहुंचे.

असुरों में पृथ्वी तक पहुंचने की खलबलीपृथ्वी के सृजन के बाद भले ही ब्रह्माजी ने जीवन का प्रारंभ करने के लिए मनु-सतरूपा की उत्पति की, लेकिन यम के रूप में वहां देव की उपस्थिति दैत्यों के लिए बेहद कष्टकारी थी. वह भी पृथ्वी पर अधिकार जमाने के लिए असुर शक्ति को वहां पहुंचाने के प्रयास में जुट गए. मगर इस समय गुरु शुक्राचार्य तपस्या में लीन हो चुके थे, इसलिए पूरी योजना टालनी पड़ी.

इन्हें पढ़ें: Mahima Shani Dev Ki : शनि के प्रयासों से माता छाया देवी बनीं, सूर्य पत्नी संध्या के हर प्रयास हुए विफल

Mahima Shani Dev Ki : शनि देव बने पृथ्वी के सृजन का आधार, जानिए कैसे बने असुरों के प्रतिनिधि