Mahabharat: बात महाभारत के युद्ध की है. इसमें गुरु द्रोणाचार्य और कृपी {कृपाचार्य की बहन} के पुत्र अश्वस्थामा ने पांडवों के विरुद्ध कौरवों का साथ दिया था. महाभारत का युद्ध चल रहा था. अश्वस्थामा के पिता गुरु द्रोणाचार्य युद्ध के मैदान में पांडवों के विरुद्ध युद्ध कर रहे थे. भगवान कृष्ण को यह पता था कि गुरु द्रोणाचार्य के रहते पाडंव इस युद्ध को जीत नहीं सकते. इसके लिए उन्होंने योजना बनाई. योजना के तहत महाबली भीम ने अश्वस्थामा नामक हाथी का वध कर दिया और यह  बात फैलाई गई कि अश्वस्थामा  मारा गया. जिसकी सूचना गुरु द्रोणाचार्य तक पहुच गई. जिसकी पुष्टि युधिष्ठर से भी की गई. ये हाथी मालव नरेश इंद्र वर्मा का था.


जब द्रोणाचार्य को यकीन हो गया कि उसका पुत्र अश्वस्थामा मार डाला गया है तो उन्होंने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए और समाधि लेकर बैठ गए. इस अवसर का लाभ उठाते हुए द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य के सर धड़ से अलग कर दिया.



अपने पिता की मृत्यु का समाचार सुनने के बाद अश्वस्थामा ने इसका बदला लेने के लिए दुर्योधन को बचन दिया. अश्वस्थामा ने बचे हुए कौरवों की सेना लेकर धोखे से पांडवों की शिविर पर हमला बोल दिया और जिसमें धृष्टद्युम्न सहित कई योद्धाओं एवं द्रोपदी के पुत्र मारे गए. द्रोपदी के पांच पुत्रों के मारे जानें की खबर जब अर्जुन को पहुंची तो उन्होंने अश्वस्थामा का सर द्रोपदी सामने लाने का वचन दिया.


उसकी तलाश के लिए अर्जुन और कृष्ण निकल पड़े. अर्जुन को देख अश्वस्थामा ने ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया जो उसे द्रोणाचार्य ने दिया था. उसके प्रतिउत्तर में कृष्ण भगवान ने भी अर्जुन को ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करने की सलाह दी. अर्जुन नें ब्रम्हास्त्र को नष्ट करने के बाद अश्वस्थामा को रस्सी से बांधकर द्रोपदी के सामने लाया. उसे देखकर द्रोपदी को दया आ गई और उसे रस्सी से मुक्त करा दिया गया. अश्वत्थामा  के कृत के लिए भगवान कृष्ण ने उसे श्राप दिया कि तू पापी लोगों का पाप ढोता हुआ तीन हजार वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटकेगा. तेरे शरीर से सदैव मवाद की दुर्गंध आती रहेगी. तू अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा और मानव और समाज भी तुमसे दूरी बनाकर रहेंगे. कृष्ण भगवान के इस श्राप के चलते उसे आज भी भटकना पड़ रहा है.