Pauranik Katha of Lord Karthikeya Kidnap:  हिंदू धर्म शास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथाओं के मुताबिक़, माता पार्वती की गोद भराई का महोत्सव बड़े धूम धाम से मनाया गया. जिस देखकर /सुनकर देवराज इंद्र ने वरुण देव यक्ष और गन्धर्वों से प्रसन्ता व्यक्त की. परन्तु ताड़कासुर द्वारा माता पार्वती की हत्या का बार-2 प्रयास किये जाने को लेकर देवराज इंद्र पहले से ही चिंतित थे. परन्तु इस बात को लेकर उनकी चिंता और बढ़ गई कि अब ताड़कासुर माता पार्वती की हत्या का प्रयास और तेज कर देगा. क्योंकि वह किसी भी कीमत पर अपने काल को जन्म नहीं लेने देना चाहेगा.


देवराज इंद्र ने कहा कि पांच देवता कैलाश पर जाकर यह ताड़कासुर की निगरानी रखेंगें ताकि वह माता पार्वती तक न पहुंच सके. इसके लिए पांच देवता पांच कबूतर का रूप धरकर कैलाश पर विचरण करने लगे. इन कबूतरों को देख महादेव और माता पार्वती आश्चर्य में पड़ गए. कबूतर रूपी पांचों देवताओं ने यह देख अपने वास्तविक रूप को बताते हुए इसका कारण बताया. परन्तु इसी वार्तालाप के दौरान ताड़कासुर कैलाश पर पहुंच गया और इस वार्तालाप को सुन लिया. इस प्रकार ताड़का सुर को यह ज्ञात हो गया कि उसपर निगाह रखने के लिए पांच देवता कैलाश पर मौजूद हैं. इसके प्रश्चात ताड़कासुर ने एक षड्यंत्र रचा.


यह था षड्यंत्र


ये महादेव और पार्वती पुत्र कार्तिकेय के जन्म का समय था. महाराजा हिमालय और उनकी पत्नी, कैलाश जाने की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने अपने साथ निर्मला दाई को भी ले जाने का निश्चय किया. यही निर्मला दाई माता पार्वती के जन्म के समय में भी थीं. महाराजा हिमालय ने मंत्री से निर्मला को लाने के लिए कहा. इसी बीच ताड़कासुर को इस बात का पता चल गया कि माता पार्वती के माता-पिता निर्मला दाई को कैलाश ले जा रहें हैं. महामंत्री के पहुंचने के पहले ही, ताड़कासुर ने निर्मला की कुटिया में पहुंचकर निर्मला दाई की हत्या कर दी और स्वयं निर्मला का भेष बनाकर मंत्री के साथ जाने को तैयार हो गया. इस प्रकार ताड़कासुर कैलाश पर्वत पर पहुच गया.



कैलाश पर्वत पर बच्चे का जन्म होते ही ताड़कासुर ने उसे गोद में उठा लिया तथा माता पार्वती को आराम करने के लिए कहा. जैसे ही माता पार्वती को नींद लगी वैसे ही ताड़कासुर बच्चे को हिमालय के शिखर पर लेकर चला गया और वह वहां से उसे नीचे फेंक दिया. ये बालक कैलाश पर पहरा दे रहे पांच देवताओ में से एक अग्नि देव की गोद में जा गिरा. बालक बहुत रो रहा था. उसकी आवाज सुनकर देवी गंगा वहां पहुंची और उसे अपने साथ लाई. माता गंगा बालक को रोते हुए देखकर यह समझ गई कि उसे बहुत भूख लगी है. इसलिए उन्होंने कृतिकाओं का स्मरण किया. तब इन कृतिकाओं ने बालक को दूध पिलाया. चूंकि बालक ने सबसे पहले इन कृतिकाओं का दूध पिया इस लिए माता गंगा ने इस बालक का नाम कार्तिकेय रखा. जब यह जानकारी गंगा को हुई कि यह बालक उनकी बहन पार्वती का है तो वे बालक को देने कैलाश पर्वत गई. वहां पार्वती को उनका पुत्र सौंप दिया.