त्रिपुरारी या कार्तिक पूर्णिमा और गुरुपरब


कार्तिक मास को पड़ने वाली पूर्णिमा को अत्यंत पवित्र माना गया है. विशेष रूप से उत्तर भारत में इस दिन गंगास्नान का बहुत महत्व है. वैसे तो देश देहात में बसे लोग प्रत्येक पूर्णिमा और एकादशी के दिन गंगा या आस पास की नदियों में स्नान करने जाते हैं पर इस दिन गंगा स्नान अति पवित्र माना जाता है. चलिए अब इसके शास्त्रीय स्वरूप पर दृष्टि डालते हैं.


नारद पुराण (पूर्वभाग-चतुर्थ पाद, अध्याय क्रमांक 124) के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा को सम्पूर्ण शत्रुओं पर विजय पाने के लिये कार्तिकेय जी का दर्शन करें. उसी तिथि को प्रदोषकाल में दीप–दान के द्वारा सम्पूर्ण जीवों के लिये सुखदायक 'त्रिपुरोत्सव' करना चाहिये. उस दिन दीप का दर्शन करके मोक्ष को प्राप्त करते हैं. उस दिन चन्द्रोदय के समय छहों कृत्तिकाओं की, खड्गधारी कार्तिकेय की तथा वरुण और अग्नि की गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, प्रचुर नैवेद्य, उत्तम अन्न, फल तथा शाक आदि के द्वारा एवं होम द्वारा पूजा करनी चाहिये.


इस प्रकार देवताओं की पूजा करके घरसे बाहर दीप-दान करना चाहिये. दीपकों के पास ही एक सुन्दर चौकोर गड्डा खोदे. उसकी लंबाई- चौड़ाई और गहराई चौदह अंगुलकी रखें. फिर उसे चन्दन और जल से सींचे. तदनन्तर उस गड्ढे को गाय के दूध से भरकर उसमें सर्वाङ्गसुन्दर सुवर्णमय मत्स्य डालें. उस मत्स्य के नेत्र मोती के बने होने चाहिये. फिर 'महामत्स्याय नमः' इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए गन्ध आदि से उसकी पूजा करके ब्राह्मण को उसका दान कर दें. यह क्षीरसागर-दान की विधि है. इस दान के प्रभाव से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप आनंद भोगता है. इस पूर्णिमा को 'वृषोसर्गव्रत' तथा 'नक्तव्रत' करके मनुष्य रुद्र—लोक प्राप्त कर लेता है.


व्रतुत्सव चंद्रिका अध्याय क्रमांक 31 अनुसार, प्राचीन काल से यह कतकी या कार्तिकी के नाम से प्रचलित है. इस दिन विष्णु का मत्स्य अवतार भी हुआ था. पवित्रता के पीछे एक कहानी है की इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक असुर का वध कर दिया था. त्रिपुर ने चारों तरफ आतंक और उत्पात मचा रखा था. उसने कठोर तपस्या द्वारा यह वरदान प्राप्त किया था कि उसे न तो कोई पुरुष मारेगा न कोई स्त्री, न देवता न राक्षस. उसे केवल वही व्यक्ति मारेगा जो मातपिता रहित है. त्रिपुर हालांकि अमरत्व ही चाहता था पर ब्रह्मा ने कहा कि वे ऐसा वरदान देने में सक्षम नहीं. तो त्रिपुर को इसी से सन्तुष्ट होना पड़ा. पर उसका उत्पात बढ़ता गया.देवताओं को उसने अपना द्वारपाल बना लिया. चारों तरफ त्राहि त्राहि मची थी.


नारद एक दिन त्रिपुर के पास पहुंचे. उनका जाना हमेशा सकारण होता है. हालचाल पूछने के बाद त्रिपुर ने नारद से जानना चाहा कि क्या उसके समान अन्य कोई शक्तिशाली है क्या. यह जानकर की वही सबसे अधिक शक्तिशाली है, वह और विध्वंसक हो गया. दूसरी तरफ नारद देवताओं के पास जाकर उनसे यह कह आए की आप यह आतंक क्यों सहन कर रहे हैं. देवताओं ने उपाय रूप में पहले अप्सराओं को त्रिपुर को जाल में फसाने के लिए भेजा. जब बात नहीं बनी तो ब्रह्मा के पास गए. ब्रह्मा ने बताया कि वरदाता तो वे स्वयं हैं तो कुछ नहीं कर सकते. देवता तब विष्णु के पास गए. विष्णु ने तब देवताओं को बताया कि वास्तव में भगवान शिव पर वे सारी बातें लागू होती हैं जो त्रिपुर को मारने के लिए आवश्यक हैं. तब सब देवताओं ने महादेव को मनाया और वे मान भी गए.


महादेव धनुष–बाण लेकर असुरों को मारने लगे. इसके बाद महादेव ने सारे राक्षस असुर और स्वयं त्रिपुर को मार गिराया और देवताओं को पुनः अमरावती उनके सुपुर्द कर दी. इस कथा का उल्लेख मैंने अपनी पुस्तक (Authentic concept of Shiva) में विस्तार से किया है. इसलिए आज का दिवस पवित्र माना जाता है. इस दिन गंगा–स्नान के बाद दान पुण्य करने से सारे पाप कष्ट नष्ट हो जाते हैं.


कार्तिक पूर्णिमा के दिन को हमारे सिख भाई बहन गुरूपरब के रूप मे भी मनाते हैं. इस दिवस गुरुनानक का भी जन्म हुआ था. आज के दिवस को लोग ”देव दीपावली” भी कहते हैं. यह दीपावली और कार्तिक मास का अंतिम दिवस भी है.


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