Kartik Purnima 2021: धर्मशास्त्र-पुराणों में सर्वाधिक पवित्र माने गए कार्तिक मास का वेदों ने ऊर्ज नाम रखा था. वेदोत्तर काल में ऋषियों ने सूक्ष्म निरीक्षण के बाद नक्षत्रों के आधार पर कार्तिक घोषित किया. तय किया गया कि कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि प्राय: कृत्तिका नक्षत्र में होती है, इसलिए इसे कार्तिक कहना अधिक सार्थक माना गया. 


यस्मिन् मासे पौर्णमासी येन धिष्णेनसंयुता। तन्नक्षत्राह्वयो मास: पौर्णमास-तदुच्यते।। यानी जिस महीने की पूर्णिमा को जो नक्षत्र हो, उसे महीने को उसी नक्षत्र के नाम से जाना जाए. इसी तरह चित्रा से चैत्र, विशाखा से वैशाख और कार्तिक कृत्तिका नक्षत्र से बना है.


जब गर्मी, बारिश से पृथ्वी ही नहीं, पूरी प्रकृति असंतुलित हो जाती है तो कार्तिक मास अशांति को खत्म करते हुए चतुर्दिक सुख, शांति, समृद्धि बिखरेता है और पूरी धरती को मंगलमय बना देता है. इस मास में नदी, तालाब, कूप, भूमिस्थ जल स्वच्छ और निर्मल हो जाते हैं. मान्यता है कि इस दौरान आकाश में ग्रह-नक्षत्र, तारे भी निर्मल दिखने लगते हैं.


ब्रह्माजी ने रचा कार्तिक मास
ज्योतिष के अनुसार, तुला राशि ब्रह्माण्ड की नाभि है. पृथ्वी का मध्य भाग तुला राशि का आरंभ बिंदु है. सभी 12 राशियों में जब मध्यभाग खत्म हो रहा होता है, तब तुला राशि शुरू होती है. तुला का अर्थ तराजू है, जिसका काम संतुलन बनाना है. अत: दिग् देश, काल और वस्तु का संतुलित बनाए रखने के लिए ब्रह्माजी ने कार्तिक मास की रचना की. यह न सिर्फ मानव बल्कि चराचर जड़ चेतन सभी को स्वास्थ्य, समृद्धि, शांति और सुख देने वाला महीना है. कार्तिक पूर्णिमा से ही पृथ्वी पर हेमंतऋतु शुरू होती है.


पूर्णिमा को स्नान से मिलते हैं ये लाभ 
1. कार्तिक पूर्णिमा को भगवान विष्णुजी ने मत्स्यावतार लिया था. पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में कार्तिक के महत्त्‍‌व बताया गया है कि पूरे कार्तिक मास में सूर्योदय से पहले स्नान से दैहिक, दैविक, भौतिकताप शांत हो जाते हैं. 


2. जो लोग कार्तिक पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से स्नान कर रात्रि जागरण करते हैं, तुलसी को दीपदान, आंवले का पूजन, आंवला के नीचे भोजन और शाम को आकाशदीप दान करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कार्तिकी पूर्णिमा को पुष्करतीर्थ, द्वारकापुरी, सूकरक्षेत्र में व्रत पूजन विशेष फलदायी होता है.


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