Diwali 2021: हिंदू कैंलेडर के मुताबिक दिवाली कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है. इस वर्ष दिवाली गुरुवार चार नवंबर को पड़ रही है. इस दिन शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी समेत 12 देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. आइए जानते हैं पूजा की विस्तृत और सर्वोत्तम विधि.


शुभ मुहूर्त 
दिवाली: चार नवंबर, 2021, गुरुवार
अमावस्या तिथि प्रारम्भ: नवंबर 04, 2021 को प्रात: 06:03 बजे से.
अमावस्या तिथि समाप्त: नवंबर 05, 2021 को प्रात: 02:44 बजे तक.


पूजन सामग्री 
लक्ष्मी, गणेश मूर्ति, लक्ष्मी सूचक सोने या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी स्नान के लिए स्वच्छ कपड़ा, बहीखाते, सिक्कों की थैली, लेखनी, काली स्याही भरी दवात, तीन थालियां, धूप, अगरबत्ती, मिट्टी के बड़े-छोटे दीपक, रुई, माचिस, सरसों तेल, घी, दूध, दही, शहद, शुद्ध जल. हल्दी, चूने का पाउडर, रोली, चंदन चूरा, कलावा, आधा किलो साबुत चावल, कलश, दो मीटर सफेद कपड़ा, दो मीटर लाल कपड़ा, कपूर, नारियल, गोला, मेवा, फूल, गुलाब या गेंदे की माला, दुर्वा, पान पत्ते, सुपारी, बताशे, खांड खिलौने, मिठाई, फल, वस्त्र, साड़ी आदि, सूखा मेवा, खील, लौंग, छोटी इलायची, केसर, सिन्दूर, कुमकुम, गिलास, चम्मच, प्लेट, कड़छुल, कटोरी, तीन गोल प्लेट, द्वार पर टांगने के लिए वन्दनवार.


पूजा की तैयारी 
-एक चौकी पर लक्ष्मी-गणेशजी की मूर्ति पूर्व या पश्चिम मुख करके रखें. लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाएं ओर रहें. पूजा करने वाले मूर्तियों के ठीक सामने बैठें. कलश लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें. नारियल को लाल वस्त्र में ऐसे लपेटें कि आगे का भाग साफ नजर आए और कलश पर रख दें.
-एक बड़े दीपक में घी भरें दूसरे दूसरे में तेल. एक दीपक चौकी के दाईं ओर और दूसरा मूर्तियों के चरणों में रखें. एक अन्य दीपक गणेशजी के पास रखें. मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर लाल कपड़ा बिछा लें. कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल कपड़े पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं. गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं.ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं. नवग्रह और षोडश मातृका के बीच स्वास्तिक बनाएं. इसके बीच में सुपारी रखें और चारों कोनों पर चावल की ढेरी के सबसे ऊपर ॐ लिख लें.
-लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिह्न, गणेशजी की ओर त्रिशूल, चावल का ढेर लगाएं. सबसे नीचे चावल की नौ ढेरियां बनाएं. इनके अतिरिक्त बहीखाता, कलम-दवात और सिक्कों की थैली भी रखें. 
-छोटी चौकी के सामने तीन थाली, जल भरकर कलश रखें. थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर कुमकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक. इन थालियों के सामने यजमान बैठें, परिवार के सदस्य आपकी बाएं ओर बैठें. कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे.
-लक्ष्मीजी की पूजा में चावल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. धान की खील (पंचमेवा गतुफल सेब, केला आदि), दो कमल. लक्ष्मीजी के हवन में कमलगट्टों को घी में भिगोकर अर्पित करना चाहिए. कमलगट्टों की माला से जप का विशेष महत्व बताया गया है.


पूजा विधि 
हाथ में जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और मूर्तियों पर छिड़कें. मंत्र पढ़ते हुए पानी को छिड़ककर खुद और पूजा सामग्री और आसन को पवित्र कर लें.
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं व वाभ्यन्तर शुचिः॥
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥


अब पृथ्वी पर जहां आसन बिछा है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम कर कहें 


ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः


अब आचमन करें
-पुष्प, चम्मच से एक बूंद पानी मुंह में छोड़िए और बोलिए- ॐ केशवाय नमः
-फिर एक बूंद पानी मुंह में छोड़िए और बोलिए- ॐ नारायणाय नमः
-फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़कर बोलिए- ॐ वासुदेवाय नमः 
-फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कह हाथों को खोलें, अंगूठे होंठों को पोंछ हाथ धो लें.
-दोबारा तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें. आचमन से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है और तिलक-अंगन्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है.
-आचमन आदि के बाद आंखें बंद कर मन स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी सांस लीजिए. हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वस्तिन इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है. फिर पूजा का संकल्प किया जाता है.
-संकल्प : हाथ में अक्षत, पुष्प और जल और कुछ द्रव्य यानी धन भीले लीजिए. मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान और समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं, जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो. सबसे पहले गणेशजी, गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन करना चाहिए.
-हाथ में थोड़ा-सा जल ले लीजिए और आह्वाहन, पूजन मंत्र बोलकर पूजा सामग्री चढ़ाइए. फिर नवग्रहों का पूजन करें और हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर नवग्रह स्तोत्र बोलिए. इसके बाद षोडश मातृकाओं का पूजन होता है. हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए. सोलहमाताओं को नमस्कार कर पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए.
-सोलह माताओं की पूजा के बाद रक्षाबन्धन होता है। इस विधि में मौली लेकर गणपति पर चढ़ाइए फिर हाथ में बंधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए. अब आनन्दचित्त से और निर्भय होकर महालक्ष्मी की पूजा प्रारंभ कीजिए.


लक्ष्मी पूजन मुहूर्त 
शाम 06 बजकर 09 मिनट से रात 08 बजकर 20 मिनट
अवधि: 1 घंटे 55 मिनट
प्रदोष काल: 17:34:09 से 20:10:27 तक
वृषभ काल: 18:10:29 से 20:06:20 तक


दिवाली पर लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए कुछ मंत्र बताए गए हैं. इनके साथ लक्ष्मी जी की पूजा करें.
ॐ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।
ॐ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम: 
पद्मानने पद्म पद्माक्ष्मी पद्म संभवे तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्। 


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