Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य ने अपने अनमोल विचारों श्लोक में पिरोया है. शिक्षा, वैवाहिक जीवन, सफलता, नौकरी, दोस्ती चाणक्य ने हर विषय की गहराईयों को नापा है. आइए जानते हैं चाणक्य के 6 श्लोक जो व्यक्ति को सही मार्ग दिखाकर सफलता की ओर ले जाते हैं.


ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः सः पिता यस्तु पोषकः। तन्मित्रं यत्र विश्वासः सा भार्या या निवृतिः॥


संतान वही है जो अपने पिता की सेवा करे. पिता वही है जो अपने पूरे परिवार का लालन-पालन कर सके. मित्र वही है जिस पर विश्वास किया जा सके और पत्नी वही है जो आपको हमेशा खुश रखें. ये सभी अगर अपनी जिम्मेदारियों को भली-भांति पूरा कर लें तो जीवन सुख-शांति से बीतता है.


प्रभूतंकार्यमल्पंवातन्नरः कर्तुमिच्छति। सर्वारंभेणतत्कार्यं सिंहादेकंप्रचक्षते॥


मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शेर की तरह व्यवहार करना चाहिए. जिस तरह एक शेर अपने शिकार पर नजर रख एकाग्रता के साथ उसको देखता है और अपनी पूरी ताकत के साथ शिकार पकड़ने का प्रयास करता है. उसी प्रकार मनुष्य को भी पूरी ताकत और एकाग्रता के साथ कोई भी कार्य करना चाहिए.


नात्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्। छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः॥


मनुष्य को सरल और सीधे स्वभाव का नहीं बनना चाहिए. जिस प्रकार जंगल के वृक्षों में सबसे पहले सीधे वृक्षों को काटा जाता है उसी प्रकार सीधे और सरल स्वभाव के मनुष्य को चालाक और चतुर लोग अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते.


विषादप्यमृतं ग्राह्यममेध्यादपि काञ्चनम्। नीचादप्युत्तमां विद्यांस्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि।।


चाणक्य कहते हैं कि विष में से भी हो सके तो अमृत निकाल ले. यानी कि अच्छे ज्ञान तथा अच्छी वस्तु को ले लेना चाहिए, फिर चाहे वह कहीं पर भी हो या किसी के भी द्वारा मिल रही हो. यदि सोना गंदगी मे गिरा हो तो उसे उठा ले. यदि कोई निचले कुल मे जन्मा हो और वह आपको ज्ञान देता है तो उसे अपना लें. ज्ञान हर जगह काम आता है.


अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः । धर्मोपदेशं विख्यातं कार्याऽकार्य शुभाऽशुभम् ।। 


चाणक्य नीति के इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति शास्त्रों के नियमों का निरंतर अभ्यास करके शिक्षा प्राप्त करता है उसे सही, गलत और शुभ कार्यों का ज्ञान हो जाता है. ऐसे व्यक्ति के पास सर्वोत्तम ज्ञान होता है. यानि ऐसे लोग जीवन में अपार सफलता प्राप्त करते हैं.


आपदर्थे धनं रक्षेद्दारान् रक्षेध्दनैरपि । नआत्मानं सततं रक्षेद्दारैरपि धनैरपि ।।


चाणक्य नीति के अनुसार मनुष्य को आने वाली मुसीबतों से बचने के लिए धन की बचत करना चाहिए. उसे धन-सम्पदा त्यागकर भी पत्नी की सुरक्षा करनी चाहिए. लेकिन बात यदि आत्मा की सुरक्षा की आ जाए तो उसे धन और पत्नी दोनों को तुक्ष्य समझना चाहिए.


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