Chanakya Niti Hindi: चाणक्य एक श्रेष्ठ विद्वान थे. आचार्य चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में मित्र और शत्रु का प्रभावशाली ढंग से अंतर बताया है. चाणक्य के अनुसार संकट के समय जो सहायता प्रदान करे वह मित्र है और विपत्ति के समय जो मुंह फेर ले वह शत्रु है. ऐसे लोगों से बचना चाहिए और इनका तिरस्कार करते हुए इनके साथ शत्रुवत व्यवहार करना चाहिए. क्योंकि ऐसे लोग कभी भी धोखा दे सकते है.


अर्थशास्त्र के भी चाणक्य ज्ञाता थे और समाज शास्त्र का भी उन्होने बहुत गहराई से अध्ययन किया था. चाणक्य के अनुसार शत्रु हमलावार हो तो आर्थिक और सामाजिक स्तर दोनों को प्रभावित करता है. इसलिए शत्रु को सदैव ही गंभीरता से लेना चाहिए और शत्रु को उसकी क्षमता के अनुसार ही रणनीति बनाकर पराजित करने का प्रयास करना चाहिए. शत्रु को लेकर चाणक्य के इस श्लोक को समझना चाहिए-


अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम्।
आत्मतुल्यबलं शत्रु: विनयेन बलेन वा।।


चाणक्य के अनुसार शत्रु यदि शक्तिशाली और संपंन है तो उसके अनुकूल आचरण की रण्नीति अपना कर उसे हराने की कोशिश की जानी चाहिए. वहीं अगर शत्रु शक्तिशाली और दुष्ट प्रवृत्ति का है तो उसके विपरीत चलकर उसे हराना चाहिए. अगर शत्रु आपके जितना ही शक्तिशाली है तो उसे तो विनय पूर्वक या बलपूर्वक हराने का प्रयास करना चाहिए.


इन बातों का ध्यान रखें
शत्रु को कभी कमजोर न समझें: शत्रु को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए. शत्रु की हर गतिविधि की जानकारी होनी चाहिए. शत्रु को गंभीरता से न लेना बड़ी लापरवाही हो सकती है.


शत्रु की हरकत पर तुरंत प्रतिक्रिया दें
शत्रु जब भी कोई हरकत करे उसे उसी प्रकार से प्रतिक्रिया देनी चाहिए. प्रतिक्रिया न देने पर शत्रु हावी होने का प्रयास करता है. इसलिए शत्रु की किसी भी हरकत को नजरअंदाज न करें.


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