Chanakya Niti Hindi: चाणक्य स्वयं एक योग्य शिक्षक थे. वे तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे. शिक्षक होने के साथ साथ आचार्य चाणक्य एक कुशल अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री भी थे. चाणक्य ने मनुष्य के जीवन को प्रभावित करने वाली हर विषय का बहुत ही गहराई से अध्ययन किया था. इस परिपेक्ष्य में उन्होनें माता पिता और संतान के बीच किस तरह के रिश्ते होने चाहिए इस पर भी चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में बहुत ही प्रभावशाली ढंग से बताया है.


कोरोना वायरस के चलते बच्चों का अधिकतर समय घर पर ही बीत रहा है. ऐसे में माता पिता बच्चों के भविष्य को लेकर भी चितिंत है. लेकिन जब उन्हें संतान में कोई गलत आदत नजर आनें लगती है तो दुखी और परेशान होने लगते हैं. लेकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है. चाणक्य ने संतान की परवरिश को लेकर कुछ बातें बताई हैं जिन्हें जीवन में अपनाकर संतान में पनपने वाली गलत आदतों को समय रहते दूर किया जा सकता है. कैसे, आइए जानते हैं-


यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी।
विभवे यश्च सन्तुष्टस्तस्य स्वर्ग इहैव हि।।


इस श्लोक का अर्थ है कि अगर किसी व्यक्ति की संतान आज्ञाकारी है और गलत कार्य नहीं करती है. माता-पिता का सम्मान करती है. उनका कहना मानती है तो ऐसे माता-पिता का जीवन स्वर्ग की तरह ही होता है. वहीं यदि संतान माता-पिता का अनादर करती है तो माता-पिता का जीवन दुखों से भर जाता है. इसलिए इस बात का सदैव ध्यान रखें-


पांच वर्ष लौं लालिये,, दस लौं ताडऩ देइ।
सुतहीं सोलह वर्ष में, मित्र सरसि गनि लेइ।।


यानि पुत्र को पांच वर्ष तक प्रेम करना चाहिए और फिर दस वर्ष तक कड़ी निगरानी में रख रखना चाहिए. इसके बाद अर्थात सोलह वर्ष के बाद पुत्र के साथ मित्र जैसा व्यवहार करें. क्योंकि बच्चों में सोलह वर्ष की आयु के बाद ही गलत आदतें विकसित होने की संभावना अधिक रहती है. इसलिए इस उम्र में बच्चे को मित्रवत समझते हुए अच्छे बुरे का बोध कराएं. इससे गलत आदतों से दूर रखने में मदद मिलेगी.


Chanakya Niti: जीवन में ये 5 चीजें व्यक्ति को बनाती हैं असफल, इनसे दूर रहें