पिछले 2 साल से कोरोना लोगों को अलग-अलग तरह से बीमार बना रहा है. दो सालों में भारत में लाखों लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं. वहीं कोरोना के दौरान घरों में कैद करने और लॉकडाउन से लोगों की मेंटल हेल्थ पर भी बुरा असर पड़ा है. कोरोना की वजह से पूरी दुनिया में मानसिक रोगियों की संख्या काफी बढ़ी है. कोरोना महामारी ने लोगों के जीवन को कई तरह से प्रभावित किया है. इस महामारी के दौर में न जाने कितने लोगों के व्यापार ठप हो गए. बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिनकी नौकरी चली गई और आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. 


कोरोना में 25 प्रतिशत बढ़े मानसिक रोगी
WHO के अनुसार कोविड-19 महामारी की वजह से पूरी दुनिया में इंग्जाइटी और डिप्रेशन के 25 प्रतिशत केस बढ़े हैं. ऐसे लोगों में अकेलापन, तनाव, घरबराहट और मानसिक रोगों की संख्या काफी बढ़ गई है. ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर न्यू इकॉनोमिक स्टडीज ने दिसंबर से फरवरी के बीच एक सर्वे किया था, जिसमें डॉक्टर्स, मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक, काउंसर और मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स से बाच की गई थी. इस सर्वे में पाया गया कि स्कूल जाने वाले बच्चों और युवाओं की मेंटल हेल्थ पर कोरोना ने बहुत असर डाला है. वहीं फ्रंट लाइन वर्कर्स और साइक्रेटिस्ट और साइकोलजिस्ट की लाइफ पर भी इसका असर पड़ा है.


बच्चों और युवाओं पर पड़ा असर
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट की मानें तो 10 से 19 साल के हर सात बच्चों में से एक बच्चा मानसिक परेशानियां झेल रहा है. इसमें बच्चों को तरह-तरह की दिक्कतें हो रही हैं. कुछ बच्चों को एंग्जाइटी, ऑटिज्म, बाईपोलर डिसऑडर, कंडक्ट डिसऑडर, इटिंग डिसऑडर, डिप्रेशन और इंटलेक्चुअल डिसेबिलिटी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. ये समस्याएं अलग-अलग उम्र और सोशल इकोनोमिक स्टेटस के हिसाब से अलग हो रही हैं. इसकी बड़ी वजह स्कूल कॉलेजों का बंद होना, बच्चों का सोशली बाहर कम निकलना, लॉकडाउन, आइसोलेशन और आर्थिक रुप से बदलाव हैं.


कोरोना महामारी की वजह से ग्रामीण इलाकों में भी स्कूल बंद रहे, जिसकी वजह से गांव में बच्चों के पढ़ने की संख्या पिछले 2 साल में बहुत कम हो गई है. स्कूल बंद होने की वजह से बच्चों को दिया जाने वाला मिल डे मील भी बंद था, जिसकी वजह से ये संख्या और भी घट गई. ऐसे में ग्रामीण इलाकों में बच्चों को एकबार फिर से स्कूल और शिक्षा की ओर लेकर आना अपने आप में बड़ी चुनौती है.


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