Child Behavior Change After No Yelling: हम सब बचपन में यही सोचते हैं कि जब हम पैरेंट बनेंगे, तो कभी अपने बच्चे पर नहीं चिल्लाएंगे, क्योंकि हमें खुद पर चिल्लाया जाना बिल्कुल पसंद नहीं था. लेकिन जैसे ही खुद पेरेंटिंग शुरू की, जल्दी ही समझ में आता है कि चीजें उतनी आसान नहीं होती है, जितना हम सोचते आते हैं. चाहे कोई पैरेंट पॉजिटिव या जेंटल पैरेंटिंग फॉलो करता हो या सिर्फ दिन को बिना तनाव के निकालने की कोशिश करता हो, हम सब कभी-न-कभी चिल्ला ही देते हैं. कितने भी वीडियो देख लें या आर्टिकल पढ़ लें, फिर भी दिन में ऐसे पल आ ही जाते हैं जब हम अपने धैर्य की सीमा पर पहुंच जाते हैं. अब सवाल यह है कि आखिर हम चिल्लाते क्यों हैं? क्यों लगता है कि आवाज़ ऊंची किए बिना बच्चा बात नहीं मानेगा? इसके पीछे कई वजहें होती हैं, जिन्हें समझना जरूरी है.
हमारा बचपन हमें आज भी चलाता है
जिंदगी के शुरुआती सात सालों में हमारा दिमाग उसी माहौल को अपनी "प्रोग्रामिंग" बना लेता है, जिसमें हम रहते हैं. यही प्रोग्रामिंग बाद में 95 प्रतिशत फैसले बिना सोचे करवाती है. इसलिए अगर बचपन में हम पर ज्यादा चिल्लाया गया है, तो दिमाग मान लेता है कि यही तरीका है किसी स्थिति को संभालने का और तनाव के समय हम वही पैटर्न दोहराते हैं. जब तनाव बढ़ता है, दिमाग का वह हिस्सा जो सोचने और समझने में मदद करता है, पीछे हट जाता है. फिर हम शांत होकर प्रतिक्रिया देने के बजाय डर, घबराहट और जल्दबाजी में रिएक्ट करने लगते हैं.
चिल्लाने का बच्चों पर असर
रिसर्च बताते हैं कि चिल्लाने से बच्चे पर तमाम तरह का असर पड़ता है, जिसमें
बच्चे के व्यवहार को बिगाड़ता हैआक्रामकता बढ़ाता हैबच्चे की सीखने और खुद को संभालने की क्षमता को कम करता हैपैरेंट-चाइल्ड बॉन्ड कमजोर करता हैमानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है
और अगर चिल्लाने में अपमान या कठोर भाषा शामिल हो, तो नुकसान और गहरा होता है.
21 दिन बच्चे पर न चिल्लाने से क्या होगा
21 दिन का फॉर्मूला हम सभी अपनी जिंदगी में पढ़ने लिखने और अन्य तमाम चीजों में करते हैं, इसे काफी कारगर माना जाता है. लेकिन जब आप अपने बच्चे पर इसका प्रयोग करते हैं, तो उसके जिंदगी पर इसक असर पड़ता है. इसको लेकर shikainnamacchhan ने अपने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि अगर आप 21 दिन अपने बच्चे पर नहीं चिल्लाते. तो इसका असर क्या होगा. उनके अनुसार इससे-
7 दिन में सोचने वाला माइंट दोबारा एक्टिव होने लगता है.14 दिन में बच्चे का ट्रस्ट सर्किट स्ट्रॉग होने लगता है21 दिन में बच्चे का बिहेवियर बदलने लगता है
इसकी सबसे खास बात यह है कि यह डर से नहीं बल्कि स्ट्रॉन्ग कनेक्शन के जरिए होता है.
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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.