जलवायु परिवर्तन अब सिर्फ मौसम तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसका सीधा असर इंसानों के स्वास्थ्य पर भी पड़ने लगा है. खासतौर पर दक्षिण एशिया जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं. हाल ही में सामने आए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि बढ़ती गर्मी और ह्यूडिटी (ह्यूमिडिटी) आने वाले वर्षों में बच्चों के शारीरिक विकास को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है.
इस अध्ययन के अनुसार, अगर हालात ऐसे ही बने रहे तो 2050 तक दक्षिण एशिया में तीन मिलियन (30 लाख) से अधिक बच्चों में बौनेपन (Stunting) की समस्या बढ़ सकती है. बौनेपन का मतलब है कि बच्चों की लंबाई उनकी उम्र के हिसाब से सामान्य से कम रह जाना, जो आगे चलकर उनके शारीरिक और मानसिक विकास दोनों को प्रभावित करता है.
क्या कहता है यह अध्ययन?
यह शोध अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है और इसे प्रतिष्ठित साइंस पत्रिका में प्रकाशित किया गया है. शोधकर्ताओं ने यह समझने की कोशिश की कि प्रेगनेंसी के दौरान ज्यादा गर्म और आर्द्र मौसम का असर बच्चों के स्वास्थ्य पर कैसे पड़ता है. विशेष रूप से, उन्होंने पांच साल से कम उम्र के बच्चों में एक अहम संकेतक का अध्ययन किया जिसे आयु-अनुरूप ऊंचाई कहा जाता है. इसका मतलब है कि बच्चे की लंबाई उसकी उम्र के औसत मानक से कितनी मेल खाती है.
प्रेग्नेंट महिलाओं पर ज्यादा असर क्यों?
प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं . जैसे वजन बढ़ता है, हार्मोनल परिवर्तन होते हैं और शरीर पहले से ज्यादा गर्मी महसूस करता है. इन कारणों से प्रेगनेंसी महिलाएं गर्मी के तनाव (Heat Stress) के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाती हैं. अगर मौसम ज्यादा गर्म और नमी वाला हो, तो शरीर को ठंडा रखना और भी मुश्किल हो जाता है. शोध में पाया गया कि प्रेगनेंसी के शुरुआती और आखिरी महीने सबसे ज्यादा जोखिम वाले होते हैं. शुरुआत में भ्रूण बहुत नाजुक होता है और अंतिम महीनों में मां का शरीर ज्यादा दबाव में होता है.
गर्मी के साथ नमी क्यों ज्यादा खतरनाक है?
अध्ययन में बताया गया कि केवल गर्मी ही नहीं, बल्कि गर्मी और ह्यूडिटी (Humidity) का मेल ज्यादा नुकसानदायक है. इसकी वजह यह है कि नमी पसीने को सूखने नहीं देती, जिससे शरीर खुद को ठंडा नहीं कर पाता है. शोधकर्ताओं ने आर्द्र-बल्ब ग्लोब तापमान (Wet Bulb Globe Temperature) का यूज किया, जो सिर्फ तापमान नहीं, बल्किनमी, धूप की गर्मी, हवा की गति जैसे कारकों को भी ध्यान में रखता है. शोध में यह सामने आया कि अगर यह तापमान 29 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाता है, तो कुछ महीनों बाद जिंदा जन्मों की संख्या घटने लगती है. वहीं, 35 डिग्री से ज्यादा तापमान के लंबे संपर्क से समय से पहले जन्म के मामले बढ़ सकते हैं.
2050 तक कितने बच्चे हो सकते हैं बौने?
अध्ययन के अनुसार, अगर जलवायु परिवर्तन इसी रफ्तार से बढ़ता रहा, तो 2050 तक दक्षिण एशिया में 30 लाख (तीन मिलियन) से ज्यादा बच्चे बौनेपन का शिकार हो सकते हैं. यह संख्या बेहद चिंताजनक है, क्योंकि बौनेपन का असर केवल कद तक सीमित नहीं रहता, बल्कि बच्चों की सेहत, पढ़ाई और भविष्य की क्षमता पर भी पड़ता है.
दक्षिण एशिया पर सबसे बड़ा खतरा
शोधकर्ताओं का कहना है कि वैश्विक तापमान लगातार बढ़ रहा है, और इसके साथ ही गर्म व आर्द्र परिस्थितियां भी बढ़ेंगी. दक्षिण एशिया , जहां दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी रहती है. इन बदलावों से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में से एक होगा. अध्ययन में साफ कहा गया है कि अगर हमने केवल तापमान पर ध्यान दिया और नमी को नजरअंदाज किया, तो हम जलवायु परिवर्तन के असली खतरों को कम आंकेंगे.
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