श्री दरबार साहिब में वर्षों तक एक घड़ी ऐसी भी लगी रही, जो वक्त तो नहीं बताती थी, लेकिन इतिहास को चुपचाप देखती रही. रोज लाखों श्रद्धालु उसके नीचे से गुजरते रहे, पर कम ही लोग जानते थे कि इसकी सुइयों के रुकने के पीछे सौ साल पुरानी कहानी छिपी है. अब जब यह घड़ी फिर से चल पड़ी है, तो सवाल उठता है कि आखिर यह बनी कितने में थी और इसे ठीक करने में इतना खर्च क्यों आया?

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इतिहास की खामोश गवाह बनी कर्जन क्लॉक

पंजाब के अमृतसर स्थित श्री दरबार साहिब में लगी कर्जन क्लॉक कोई साधारण घड़ी नहीं है. यह ब्रिटिश भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन से जुड़ी ऐतिहासिक धरोहर है. 9 अप्रैल 1900 को लॉर्ड कर्जन अपनी पत्नी के साथ स्वर्ण मंदिर पहुंचे थे. उस समय मंदिर परिसर में लगी सामान्य दीवार घड़ी उन्हें इसकी गरिमा के अनुरूप नहीं लगी. इसी से प्रेरित होकर उन्होंने यहां एक विशेष और भव्य घड़ी लगाने की इच्छा जताई थी. 

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इंग्लैंड में बना था खास डिजाइन

लॉर्ड कर्जन के निर्देश पर इंग्लैंड के बर्मिंघम स्थित प्रतिष्ठित कंपनी एल्किंगटन एंड कंपनी को इस घड़ी के निर्माण का काम सौंपा गया. लगभग दो साल की मेहनत के बाद पीतल से बनी यह शानदार मैकेनिकल घड़ी तैयार हुई. 31 अक्टूबर 1902 को दीवाली और बंदी छोड़ दिवस के पावन अवसर पर इसे श्री दरबार साहिब को भेंट किया गया था. यह घड़ी अपनी बनावट और गरिमा के कारण उस समय विशेष मानी जाती थी.

कितने रुपये में बनी थी कर्जन क्लॉक

कर्जन क्लॉक के निर्माण खर्च का उस समय का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड तो उपलब्ध नहीं है. हालांकि इतिहासकारों और विशेषज्ञों के अनुसार यह एक विशेष ऑर्डर पर बनी घड़ी थी, जिसकी लागत उस दौर में काफी अधिक रही होगी. आज के मूल्य के अनुसार इसकी अनुमानित कीमत लगभग 80 हजार पाउंड मानी जाती है, जो भारतीय मुद्रा में करीब 95 से 96 लाख रुपये के आसपास बैठती है. यही वजह है कि इसके संरक्षण पर भी लगभग इतनी ही राशि खर्च हुई है.

वक्त के साथ खोती चली गई पहचान

समय बीतने के साथ इस ऐतिहासिक घड़ी की चमक फीकी पड़ गई और गिरने से इसके ढांचे में दरारें आ गई थीं. इसकी मूल मैकेनिकल मशीनरी, डायल और सुइयों को हटाकर एक साधारण क्वार्ट्ज सिस्टम लगा दिया गया. एल्यूमीनियम डायल और बदली हुई सुइयों के कारण इसकी ऐतिहासिक पहचान लगभग समाप्त हो चुकी थी, और यह वर्षों तक 10 बजकर 08 मिनट पर ही रुकी रही.

संरक्षण कार्य में हुआ बड़ा खुलासा

साल 2023 में जब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की देखरेख में श्री दरबार साहिब में संरक्षण कार्य चल रहा था, तब यह घड़ी एक आधुनिक घड़ी के पीछे छिपी हुई मिली. इसके बाद गुरु नानक निष्काम सेवक जत्था को इसे बहाल करने की जिम्मेदारी दी गई. एसजीपीसी की अनुमति के बाद घड़ी को ब्रिटेन भेजा गया, जहां बर्मिंघम के विशेषज्ञों ने करीब दो साल तक इस पर काम किया.

96 लाख रुपये में लौटी पुरानी शान

करीब 80 हजार पाउंड यानी लगभग 96 लाख रुपये की लागत से कर्जन क्लॉक को उसके मूल स्वरूप में वापस लाया गया. पीतल का नया डायल तैयार किया गया, जिसमें रोमन अंकों का इस्तेमाल हुआ. इसकी पुरानी मैकेनिकल प्रणाली को फिर से कार्यशील बनाया गया. नवंबर में घड़ी भारत लौट आई और जनवरी में इसे उसी ऐतिहासिक स्थान पर फिर से स्थापित करने की योजना है.

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