जॉनसन एंड जॉनसन की एचआईवी वैक्सीन के परीक्षण का नतीजा जारी हो गया है. परीक्षण के दौरान वैक्सीन एचआईवी संक्रमण को रोक पाने में नाकाम साबित हुई. हालांकि, वैक्सीन बिना गंभीर साइड-इफेक्ट्स के सुरक्षित पाई गई, लेकिन संक्रमण की रोकथाम में उसका असर मात्र 25 फीसद ही साबित हुआ, इसका मतलब असफलता कहा जाएगा. 


जॉनसन एंड जॉनसन को HIV वैक्सीन बनाने में नहीं मिली सफलता  


कंपनी ने बयान जारी कर परीक्षण के नतीजों की जानकारी दी. एचआईवी वैक्सीन के परीक्षण को अफ्रीका में अंजाम दिया गया था और उसका नाम ‘Imbokodo’ रखा गया था. 2017 में शुरू किए गए परीक्षण से काफी उम्मीदें थीं क्योंकि कुछ लोगों को लगता था कि इससे घातक बीमारी को नष्ट करने का संभावित तौर पर दरवाजा खुलेगा. Imbokodo में अफ्रीकी देशों की 2600 महिलाओं को शामिल किया गया था. माना जा रहा था कि परीक्षण के नतीजे सकारात्मक आएंगे, मगर ऐसा नहीं हो सका.


चीफ वैज्ञानिक अधिकारी पॉल स्टोफेल्स ने एक बयान में कहा, "हालांकि हमें मायूसी हुई है कि वैक्सीन उम्मीदवार ने Imbokodo नामी परीक्षण में एचआईवी संक्रमण के खिलाफ सुरक्षा का पर्याप्त लेवल नहीं दिया, मगर जॉनसन एंड जॉनसन अमेरिका और यूरोप में गे पुरुष और ट्रांसजेंडर पर अपना समानांतर परीक्षण जारी रखेगी." उन्होंने बताया कि एचआईवी वायरस बिल्कुल अलग और जटिल है. ये मरीज की इम्यूनिटी को सीधे कम करता है. ऐसी स्थिति में, इस वायरस के खिलाफ वैक्सीन की तैयारी आसान नहीं है.


संक्रमण की रोकथाम में मात्र 25 फीसद ही साबित हुई असरदार


अमेरिका में संक्रामक बीमारियों के सबसे बड़े डॉक्टर एंथनी फाउची कहते हैं कि हमें Imbocodo परीक्षण के नतीजों से सीखने की जरूरत है. इसके लिए जरूरी है कि वैक्सीन बनाने का प्रयास निरंतर जारी रखा जाए जो एचआईवी के खिलाफ प्रभावी हो. एचआईवी का पता पहली बार 1981 में चला था, जब लॉस एंजिलेस और न्यूयॉर्क के गे पुरुषों में गंभीर रूप से प्रतिरक्षा की कमी उजागर हुई. 1982 में, अमेरिकी सेंटर फोर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने 'एड्स' Acquired Immune Deficiency Syndrome की परिभाषा गढ़ी.


एचआईवी वायरस किसी शख्स के इम्यून सिस्टम को कमजोर करता है, जो उसको बीमारियों के खिलाफ लड़ने में अक्षम बनाती है. ये स्थिति आखिरकार एड्स में विकसित हो सकती है जब किसी शख्स के इम्यून सिस्टम को काफी नुकसान पहुंच चुका हो. परीक्षण का विश्लेषण 18-35 वर्षीय महिलाओं को पहली डोज लगाए जाने के दो साल बाद किया गया. शोधकर्ताओं ने पाया कि प्लेसेबो प्राप्त करनेवाली 63 प्रतिभागी और वैक्सीन लगवानेवाली 51 महिला एचआईवी से संक्रमित हो गईं, इसका मतलब हुआ कि प्रभावशीलता 25.2 फीसद साबित हुई. मॉडर्ना ने भी कोविड-19 वैक्सीन में मशहूर हुई एमआरएनए तकनीक का इस्तेमाल करते हुए एचआईवी वैक्सीन के लिए परीक्षण शुरू किया है.


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