Heart Disease: दिल बॉडी का बेहद इंपोर्टेंट पार्ट होता है. इसमें जरा सी गड़बड़ी होने पर ये काम करना बंद कर सकता है. आमतौर पर इसे हार्ट अटैक और कार्डिएक अरेस्ट के रूप में जाना जाता है. खराब लाइफ स्टाइल, किसी तरह की बीमारी हार्ट को बुरी तरह प्रभावित करती है. इसकी कार्यक्षमता प्रभावित होने के कारण इसकी धड़कनों पर असर पड़ता है. इसी वजह से कई बार इसकी स्पीड बहुत स्लो तो कई बार बहुत तेज हो जाती हैं. धड़कनों का अबनार्मल होना किसी भी व्यक्ति को गंभीर रूप से बीमार बना देता है. ऐसी धड़कनों को नियंत्रित करने के पेसमेकर बेहद उपयोगी होता है. जानने की कोशिश करते हैं कि पेसमेकर क्या है और ये कैसे काम करता है. इसे लगने के बाद क्या सावधानी बरतनी चाहिए. 


कहां लगाया जाता है पेसमेकर


पेसमेकर को चलाने के लिए बैटरी लगी हुई होती है. यह धड़कनों को रेग्युलेट करने का काम करता है. पारंपरिक पेसमेकर तीन हिस्सों मेें बंटा होता है. एक भाग जनरेटर, तार और सेंसर होते हैं. कुछ नए पेसमेकर में वायरलेस भी होते हैं. यह कॉलरबोन के नीचे या कभी-कभी पेट क्षेत्र में छाती पर छोटे चीरे के माध्यम से स्किन मंे भीतर लगाया जाता है. त्वचा के नीचे लगाया जाता है. पेसमेकर को तारों के माध्यम से दिल से जोड़ा जाता है. यह विद्युत तरंगों से दिल की धड़कनों को रेग्यूलेट करता है. 


पेसमेकर कब लगता है?


दिल काम करना कम कर देता है. इससे धड़कन बहुत धीमी हो जाती हैं. कई बार धड़कन बहुत धीमी या तेज हो जाती हैं. सांस फूलने, चक्कर आना, बेहोश होने समेत अन्य लक्षण देखने को मिलते हैं. इसस हार्ट की दीवारें कमजोर हो जाती हैं. हार्ट वीक होने पर हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ जाता है. 


3 तरह का होता है पेसमेकर


पेसमेकर तीन तरह का होता है. सिंगल लीड पेसमेकर, डयूअल लीड और तीसरा बायवेंट्रिकुलर पेसमेकर होता है. सिंगल लीड पेसमेकर में दिल के निचले दायें खाने में रखे एक तार का यूज किया जाता है. ड्युअल लीड पेसमेकर में एक तार ऊपरी दायें खाने में और एक तार निचले दायें खाने में होता है. जबकि तीसरी तरह के बायवेंट्रिकुलर पेसमेकर में तीन तार होते हैं. उन्हें ऊपरी दायें, निचले दायें और निचले बायें खाने में रखा जाता है. 


ये सावधानी जरूर बरतें


पेसमेकर लगाते समय यह जरूर देखना चाहिए कि उसकी बैटरी कितने साल तक चल सकती है. चूंकि एक समय बाद बैटरी डिसचार्ज होने पर इसे बदलावा पड़ता है. इसकी सेटिंग्स डॉक्टर से पूछ लें. उससे अनावश्यक छेड़छाड़ न करें. पेसमेकर और अस्पताल की डिटेल हमेशा अपने ससाथ रखें. इसके अलावा पेसमेकर लगने के बाद फिजिकली सावधानी बरतने की भी जरूरत है. अधिक वजन न उठाएं. पेसमेकर वाली जगह पर किसी तरह का दबाव न डालें. जिस ओर पेसमेकर लगा है. उधर साइड के हाथ को कुछ दिनों तक कंधे से ऊपर न उठाएं.


Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.


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