नई दिल्ली: डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों में बौद्धिक विकास प्रभावित हो जाता है. हाल ही में हुए एक सेमिनार के दौरान ये बात सामने आई है. डाउन सिंड्रोम क्रोमोसोम से जुड़ा विकार है. इससे पीड़ित बच्चों में सीखने की क्षमता कम होती है और बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याएं भी होती हैं. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि क्‍या है ये सिंड्रोम और बच्चों  पर इसका क्या-क्या प्रभाव पड़ता है.


क्या कहते हैं आंकड़ें-
आंकड़ों के मुताबिक, भारत में एक हजार में से एक बच्चे को डाउन सिंड्रोम होता है. इस सिंड्रोम से देशभर में 4 लाख से अधिक पीडि़त बच्चे हैं. इस विकार के बढ़ने का कारण जागरूकता में कमी भी है.


डाउन सिंड्रोम हो तो- ऐसे बच्चों का विकास सामान्य बच्चों के मुकाबले धीमा होता है. ऐसे बच्चें कोई भी चीज बहुत जल्दी से नहीं सीख पाते. इतना ही नहीं, डाउन सिंड्रोम से पीडि़त बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास भी बहुत धीमा होता है. बच्चे की उम्र बढती जाती है लेकिन अपनी उम्र से छोटे बच्चों की तरह ये व्यवहार करते हैं.


डाउन सिंड्रोम की पहचान-
डाउन सिंड्रोम होने पर बच्चे का चेहरा अलग तरीके से पनपता है. इतना ही नहीं, बच्चे का बौद्धिक विकास नहीं हो पाता. आमतौर पर ये आनुवांशिक समस्या है. बच्चे में क्रोमोसोम की अधिक संख्या होने से उन्हें ये विकार हो सकता है. सामान्यतौर पर बच्चों में 46 क्रोमोसोम होते हैं. घर में यदि किसी को ये विकार हो तो भी डाउन सिंड्रोम हो सकता है.


डाउन सिंड्रोम के लक्षण-
इस सिंड्रोम से पीड़ि‍त बच्चों की मांसपेशियां और जोड़ों में लचीलापन होता है या यूं कहें कि ये ढीले होते हैं. ऐसे बच्‍चों के कानों से संबंधित, सांस संबंधी और हार्ट रिलेटिड डिजीज होने का खतरा बरकरार रहता है. ऐसे बच्चों को अल्जाइमर और कैंसर का भी खतरा रहता है.


ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें.