आज का बच्चा जिस दुनिया में बड़ा हो रहा है, वहां स्मार्टफोन, टैबलेट और इंटरनेट उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं. पहले बच्चे खाली समय में बाहर खेलते थे, किताबें पढ़ते थे या परिवार के साथ बैठकर बातें करते थे. लेकिन अब मनोरंजन का मतलब धीरे-धीरे मोबाइल स्क्रीन तक सिमट गया है.खासकर छोटी वीडियो जैसे टिक-टॉक, इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब शॉर्ट्स बच्चों के जीवन में इतनी गहराई से शामिल हो चुकी हैं कि वे सिर्फ समय बिताने का साधन नहीं रहीं, बल्कि बच्चों की सोच, आदतों और व्यवहार को भी बदलने लगी हैं.

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ये वीडियो देखने में भले ही मजेदार और हल्के-फुल्के लगें, लेकिन इनके पीछे छिपे खतरे धीरे-धीरे बच्चों की सेहत और मानसिक विकास पर असर डाल रहे हैं. माता-पिता अक्सर यह सोचते हैं कि बच्चा बस मोबाइल पर वीडियो देख रहा है, कोई नुकसान नहीं होगा. लेकिन असली समस्या वीडियो देखने की नहीं, बल्कि लगातार देखते चले जाने की आदत की है.

क्यों बच्चों को इतना अट्रैक्ट करते हैं शॉर्ट वीडियो?

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शॉर्ट वीडियो बहुत छोटे, तेज और ट्रेंड से जुड़े होते हैं. इनमें गाने, मजाक, स्टंट, चौंकाने वाले सीन और फिल्टर होते हैं, जो बच्चों का ध्यान तुरंत खींच लेते हैं. एक वीडियो खत्म होते ही दूसरा अपने आप चलने लगता है.इसमें बच्चे को सोचने या रुकने का मौका ही नहीं मिलता, वह बस उंगली से स्क्रॉल करता रहता है. समस्या यह है कि ये ऐप्स बच्चों के लिए बनाए ही नहीं गए, लेकिन सबसे ज्यादा यूज वही कर रहे हैं. कई बार बच्चे इन्हें अकेले देखते हैं, बिना किसी निगरानी के, ऐसे में उन्हें यह समझ ही नहीं आता कि कब मजेदार वीडियो खतरनाक या गलत कंटेंट में बदल जाता है. 

नींद पर बुरा असर

आज बहुत-से बच्चे सोने से ठीक पहले मोबाइल देखने की आदत बना चुके हैं.अंधेरे कमरे में चमकती स्क्रीन आंखों और दिमाग दोनों को थका देती है. मोबाइल की तेज रोशनी से नींद लाने वाला हार्मोन देर से काम करता है। ऊपर से वीडियो का तेज बदलाव दिमाग को शांत होने नहीं देता है. नतीजा यह होता है कि बच्चे देर से सोते हैं, नींद पूरी नहीं होती और सुबह उठने में परेशानी होती है. नींद की कमी का असर सीधा बच्चों के मूड, पढ़ाई और व्यवहार पर पड़ता है. वे चिड़चिड़े हो जाते हैं और छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगते हैं. 

ध्यान लगाने और खुद पर काबू रखने की क्षमता होती है कमजोर

शॉर्ट वीडियो आमतौर पर 15 से 90 सेकंड के होते हैं. हर वीडियो में कुछ नया, तेज और चौंकाने वाला होता है. इससे बच्चों का दिमाग धीरे-धीरे लगातार नई उत्तेजना का आदी हो जाता है. जब बच्चा किताब पढ़ने, होमवर्क करने या किसी एक काम पर ध्यान लगाने की कोशिश करता है, तो उसका मन जल्दी भटकने लगता है. 2023 के एक विश्लेषण में पाया गया कि ज्यादा शॉर्ट वीडियो देखने वाले बच्चों में ध्यान लगाने की क्षमता कम हो जाती है, सेल्फ कंट्रोल की शक्ति कमजोर पड़ने लगती है, यही वजह है कि बच्चे बार-बार कहते हैं बस एक वीडियो और, लेकिन वह एक कभी खत्म नहीं होता है. 

बढ़ती चिंता और सामाजिक बेचैनी

लगातार स्क्रीन देखने से सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक सेहत पर भी असर पड़ता है. हाल के अध्ययनों में सामने आया है कि जो बच्चे और किशोर लंबे समय तक शॉर्ट वीडियो देखते हैं, उनमें चिंता (एंग्जायटी), बेचैनी, अकेलापन जैसी समस्याएं ज्यादा देखने को मिलती हैं. नींद खराब होने से यह परेशानी और बढ़ जाती है. जब बच्चा ठीक से सो नहीं पाता, तो उसका मन भारी रहता है, पढ़ाई में मन नहीं लगता और दोस्तों व परिवार से बातचीत भी कम हो जाती है. असल में छोटे बच्चे ज्यादा संवेदनशील होते हैं. उनका दिमाग अभी विकसित हो रहा होता है. वे जो देखते हैं, उसे जल्दी सीख लेते हैं और असर भी जल्दी होता है. ऑटोप्ले फीचर की वजह से एक वीडियो खत्म होते ही दूसरा शुरू हो जाता है. ऐसे में हिंसक, डरावना, जोखिम भरा, कंटेंट अचानक सामने आ सकता है. शॉर्ट वीडियो में पूरा संदर्भ नहीं होता है. एक पल में हंसी और अगले पल डर या संवेदनशील सीन आ जाता है. बच्चों के लिए यह बदलाव बहुत उलझाने वाला हो सकता है. 

सरकार और स्कूल अब हो रहे हैं सतर्क

अच्छी बात यह है कि अब इस समस्या को गंभीरता से लिया जा रहा है. कई देशों में स्कूलों को डिजिटल सुरक्षा और ऑनलाइन समझदारी बच्चों को सिखाने की सलाह दी गई है. कुछ स्कूलों में मोबाइल के इस्तेमाल पर रोक या सीमाएं लगाई जा रही हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से यह मांग की जा रही है कि बच्चों के लिए सुरक्षित सेटिंग्स हों, उम्र की सही जांच हो और नुकसानदायक कंटेंट से बच्चों को बचाया जाए. 

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