What is Autoism: ऑटिजम एक न्यूरो डिवेलपमेंट समस्या है. जिन बच्चों में ये समस्या होती है वे बच्चे अच्छी तरह से सोशलाइज नहीं होते हैं. जबकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और बिना किसी इंटरैक्शन के हमारी लाइफ संभव नहीं है. सोशल होने के लिए इंसानों के पास लैंग्वेज है. लेकिन ऑटिज़म से ग्रसित बच्चे (Autism in Child) ना के बराबर बात करते हैं और जो बात बोलते हैं, शुरुआती स्तर पर पैरंट्स के लिए उसे समझना काफी मुश्किल होता है. अच्छी बात यह है कि इस डिसऑर्डर के लक्षण बेहद छोटी उम्र में नजर आने लगते हैं (Symptoms of Autism) और यदि समय से इलाज किया जाए तो बच्चा काफी हद तक सामान्य जीवन जी पाता है.


इस उम्र में दिखने लगते हैं बीमारी के लक्षण


ऑटिज़म जिन बच्चों में होता है, उनमें इस बीमारी के लक्षण 6 महीने की उम्र के बाद से ही दिखने लगते हैं. हालांकि डायग्नॉसिस के बाद भी डॉक्टर्स इसे डिक्लेयर नहीं करते हैं. क्योंकि 3 साल की उम्र तक बच्चे की भाषा विकसित हो रही है होती है और कुछ बच्चे देर से इंटरैक्शन शुरू करते हैं. लेकिन यदि बच्चा   3 साल की उम्र होने के बाद भी इंटरैक्शन शुरू नहीं करता है तब इस डिसऑर्डर को पुख्ता मानते हुए इसकी थेरपी और इलाज शुरू किया जाता है.


हालांकि जो बच्चे देर से इंटरैक्शन शुरू करते हैं, ऑटिज़म में दी जाने वाली थेरपीज उनके लिए भी हेल्पफुल होती हैं. इसलिए यदि आपका बच्चा 2 साल की उम्र तक बहुत रिजर्व रहता है, अपने हम उम्र बच्चों की तुलना में कम बात करता है, अन्य बच्चों से घुलता-मिलता नहीं है तो आप उसे सायकाइट्रिस्ट को दिखा सकते हैं और उनके सुझाव पर जरूरी थेरपीज दिला सकते हैं. क्योंकि ऐसा करने बच्चे के पर्सनैलिटी डिवेलपमेंट में बहुत अधिक सहायक साबित होगा. 


ऑटिज़म के लक्षण


चलना फिरना, चीजों को होल्ड करना, लुड़कना इत्यादि नॉर्मल होता है. लेकिन ये बच्चे आई कॉन्टेक्ट नहीं करते. बात नहीं करते. सोशल स्माइल नहीं करते यानी बच्चों को देखकर जब कोई स्माइल करता है या उनसे बात करता है तो कुछ महीने का बच्चा भी पलटकर स्माइल करता है. जबकि ये चीजें ऑटिज़म वाले बच्चे नहीं करते हैं. सिर्फ इतना ही नहीं डॉक्टर्स का इस डिसऑर्डर को पहचानने का अपना पैरामीटर होता है और यदि उन्हें बच्चे में सभी लक्षण नजर आते हैं तो वे उसे हाई रिस्क पर रख देते हैं लेकिन 3 साल की उम्र से पहले डिसऑर्डर डिक्लेयर नहीं करते. जबकि वो आपको ऐसी थेरपीज और इलाज का सुझाव देते हैं, जो बच्चे को बहुत जल्दी रिकवर होने और सामान्य लाइफ जीने में मदद करते हैं.


इलाज
यदि बच्चे में इस तरह की समस्या है तो आप  उसे न्यूरोलॉजिस्ट, सायकाइट्रिस्ट या पीडिएट्रिशियन के पास ले जाएं. असेस्मेंट होने के बाद पता चल जाता है कि डिसऑर्डर माइल्ड है, मॉडरेट है या सीवियर है. इन्हीं के आधार पर इलाज शुरू होता है और इन्ही के आधार पर यह तय होता है कि बच्चा किस हद तक नॉर्मल लाइफ जी पाएगा. 


''उद्गम मेंटल हॉस्पिटल की सीनियर क्लीनिकल साइकोलजिस्ट डोना सिंह का कहना है कि इस डिसऑर्डर का इलाज दो साल की उम्र से भी संभव है. इसलिए यदि पैरंट्स को अपने बच्चे में ऑटिज़म के लक्षण दिखते हैं तो उन्हें स्पेशलिस्ट को जरूर दिखाना चाहिए. ताकि बच्चा जल्दी से जल्दी सामान्य जीवन में लौट सके, इंटरैक्शन कर सके और अन्य बच्चों के साथ इन्वॉल्व हो सके.''


Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों व दावों को केवल सुझाव के रूप में लें, एबीपी न्यूज़ इनकी पुष्टि नहीं करता है. इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट पर अमल करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.


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