आज की बड़ी चिंता यह है कि दुनिया के 1.4 अरब नौनिहाल, जिनकी उम्र महज 0 से 15 साल के बीच है, सामाजिक सुरक्षा के दायरे से बाहर हैं. ये बच्चे, जिन्हें हमारे समाज का भविष्य कहा जाता है, बीमारी, भूख और गरीबी के गहरे साये में जीवन गुजार रहे हैं. जब ये बच्चे बीमार पड़ते हैं या जब उन्हें पोषण की सख्त जरूरत होती है, तो उनके पास मदद के लिए हाथ बढ़ाने वाला कोई नहीं होता. यह आकंड़े इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन, सेव द चाइल्ड और यूनीसेफ जैसे संगठनों ने जारी की है. 


दस में से नौ बच्चे प्रभावित
दुनिया भर के कम आय वाले देशों में, बच्चों को मिलने वाले बाल लाभ की स्थिति बेहद निराशाजनक है. वहां हर दस बच्चों में से कम से कम एक भी ऐसा नहीं है जो इस तरह की सामाजिक सुरक्षा का लाभ उठा पा रहा हो. इसकी तुलना में, अमीर देशों में बच्चों को यह सुविधा कहीं अधिक सुलभ है. इस भारी असमानता से साफ जाहिर होता है कि गरीब देशों के बच्चे उन सुरक्षाओं और अवसरों से वंचित हैं, जो उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए अत्यंत जरूरी हैं. यह असमानता न केवल उनके वर्तमान पर बल्कि उनके आने वाले कल पर भी गहरा प्रभाव डालती है. 


बुनियादी सुविधाओं का आभाव
जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 14 वर्षों में बाल लाभों तक पहुंच में सामान्य सी वृद्धि हुई है. 2009 में जहां विश्व स्तर पर केवल 20% बच्चे इन लाभों का उपयोग कर पा रहे थे, वहीं 2023 में यह प्रतिशत बढ़कर 28.1% हो गया. फिर भी, इस प्रगति में विषमता स्पष्ट नजर आती है. जहां एक ओर उच्च आय वाले देशों में लगभग 84.6% बच्चे बाल लाभ प्राप्त कर रहे हैं, वहीं कम आय वाले देशों में यह दर बहुत कम, केवल 9% के आसपास है. यह अंतर न केवल आर्थिक विषमता को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि विकासशील देशों के बच्चों को जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में हम अभी भी कितने पीछे हैं. 


33.3 करोड़ बच्चों पर गरीबी की मार
दुनिया में करीब 33.3 करोड़ बच्चे ऐसी हालत में जी रहे हैं, जहां उनके पास रोजाना की बुनियादी जरूरतों के लिए भी पैसे नहीं हैं. ये बच्चे हर दिन 2.15 अमेरिकी डॉलर से भी कम में गुजारा करने की कोशिश करते हैं. इसके अलावा, एक अरब से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं जो गरीबी के कई पहलुओं में फंसे हुए हैं और उन्हें हर रोज कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. यह स्थिति बहुत ही चिंताजनक है और इसे बदलने की जरूरत है.