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भारत की बड़ी छलांग, 2007 तक सिर्फ 1 ट्रिलियन डॉलर GDP, 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर वाली तीसरी बड़ी इकोनॉमी की ओर

भारत को अगर विकास की गति बनाए रखनी है, तो प्रति व्यक्ति आय (पर कैपिटा इनकम) बढ़ाने पर ध्यान देना होगा. लोगों को उच्च उत्पादकता के क्षेत्र में लाना होगा, भारत की 45 फीसदी जनता खेती पर निर्भर है.

हाल ही में भारत ने दिल्ली के आइटीपीओ में बने भारत मंडपम का उद्घाटन करते हुए 26 जुलाई को भारत के विकास की गाथा सुनाते हुए यह भी घोषणा की थी कि उनके तीसरे कार्यकाल में भारत दुनिया की तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाों में होगा. आनेवाले जी20 समिट के लिए आइटीपीओ का पूरी तरह से नवीनीकरण हुआ है और यह वैश्विक स्तर का प्रदर्शनी सह सम्मेलन केंद्र दुनिया के गिने-चुने स्थानों में एक है, जिसकी बैठने की क्षमता सिडनी ओपेरा हाउस से भी अधिक है. प्रधानमंत्री ने यह भी बताया था कि 2014 में जब उन्होंने सत्ता संभाली थी, तो भारत दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, लेकिन आज 2023 में यह पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है.

आइएमएफ ने भी अनुमान लगाया है कि भारत 2027 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. चीन को लगातार दो वर्षों से पीछे छोड़कर भारत ने दुनिया में सबसे तीव्र गति की विकास दर हासिल की है. कोरोना और वैश्विक मंदी की आहट के बीच निश्चित तौर पर यह बड़ी बात है और अब भारत को अर्जुन की तरह बस चिड़िया की आंख पर निशाना साधना है. आईएमएफ के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था फिलहाल 3.7 ट्रिलियन डॉलर की है, जबकि इसके आगे केवल जर्मनी, जापान, चीन और अमेरिका ही हैं. 2027 तक भारत की अर्थव्यवस्था 5.2 ट्रिलियन डॉलर की हो सकती है. 

भारत ने लगायी है बड़ी छलांग

एक रोचक बात यह है कि भारत को 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में कुल छह दशक लग गए. आईएमएफ के दस्तावेजों की मानें तो 1947 से ठीक 60 साल बाद यानी 2007 में भारत ने 1ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी का लक्ष्य हासिल किया था. उस साल हमारी अर्थव्यवस्था 1.2 ट्रिलियन डॉलर की थी. इसके बाद भारत ने अपनी आर्थिक नीतियों में व्यापक सुधार किए और 2014 तक हमारी इकोनॉमी 2 ट्रिलियन डॉलर की हो गयी. अगले सात वर्षों में फिर से 1.2 ट्रिलियन डॉलर भारत की अर्थव्यवस्था में जुड़े.

अगर आईएमएफ का अनुमान देखें तो 2027 तक भारत की अर्थव्यवस्था 5.2 ट्रिलियन डॉलर की होगी, जिसका मतलब है कि केवल छह वर्षों में 2 ट्रिलियन डॉलर भारतीय इकोनॉमी में जुड़ेंगे. यह सचमुच ऐतिहासिक होगा और भारत की वैश्विक रंगमंच पर जबर्दस्त धमक भी होगी. वैसे, जब भी अर्थव्यवस्था की वास्तविक मजबूती की बात होती है, तो हम वास्तविक परचेजिंग पावर पैरिटी (पीपीपी) को भी देखते हैं. यह लोगों की खरीदने की ताकत (बाइंग कैपिसिटी) को वैश्विक संदर्भ में दिखाता है. इसी को समझाते हुए डीएमआई पटना के प्रोफेसर सूर्यभूषण बताते हैं, "अगर हम बाल काटने का उदाहरण लें, तो जैसे अमेरिका में उसके 15 डॉलर लगते हैं और भारत में 50 रुपए.

इस संदर्भ में हैम्बर्गर इंडेक्स को समझना चाहिए. इकॉनॉमिस्ट जो पत्रिका है, वह यह इंडेक्स निकालता है. जैसे, हैम्बर्गर में जो ब्रेड लगता है, चीज लगता है, उसके अंदर की सब्जी वगैरह हो गयी, तो एक हैम्बर्गर भारत में, जापान में, अमेरिका में कितने में मिलता है और इसी के आधार पर वह इंडेक्स निकालता है. जैसे, भारत में अगर यह 100 रुपए का बना और अमेरिका में 2 डॉलर का, तो यहां 100 बराबर 2 हो गया. इसी को परचेजिंग पावर पैरिटी कहते हैं. इसमें एक्सचेंज रेट और प्राइस रेट को भी संदर्भ में रखते हैं. कुल मिलाकर 1 डॉलर में आप क्या खरीद सकते हैं, वह पता चलता है." जहां तक भारत की बात है तो पीपीपी के आधार पर अगर जीडीपी को आंके तो भारत अभी ही वैश्विक संदर्भ में तीसरे स्थान पर है, जहां इसकी जीडीपी 13 ट्रिलियन (पीपीपी के संदर्भ में) की है और चीन शीर्ष पर 33 ट्रिलियन डॉलर के साथ है. 

भारत की चुनौतियां भी बहुतेरी

भारत को अगर विकास की गति बनाए रखनी है, तो प्रति व्यक्ति आय (पर कैपिटा इनकम) बढ़ाने पर ध्यान देना होगा. लोगों को कम उत्पादकता वाले कामों से निकालकर उच्च उत्पादकता के क्षेत्र में लाना होगा, क्योंकि भारत की 45 फीसदी जनता अब भी खेती पर निर्भर है. खेती को बाजार से जोड़कर, कृषि-उत्पाद और कृषि बाजारों को बढा़वा देना ही वक्ती जरूरत है. इसके लिए शोध और विकास (आर एंड डी) के साथ ही ग्रामीण आधारभूत ढांचे और कृषि-बाजार को खोलने की भी जरूरत है. इसके लिए विभिन्न तरह की जो सब्सिडी केंद्रीय और राज्य के स्तर पर है, उसको भी विस्तृत तौर पर विवेचित किए जाने की जरूरत है. सख्त राजनीतिक इच्छाशक्ति से ही ऐसा किया जा सकता है और रेवड़ी कल्चर को रोके बिना हमारा सपना पूरा नहीं हो सकता है. नेता चाहे जिस भी पार्टी के हों, जब फ्रीबीज की घोषणा करते हैं, तो वह रिश्वत ही होती है और अंतिम तौर पर अर्थव्यवस्था को ही नुकसान पहुंचाती है. चुनाव आयोग को चाहिए कि वह इसका संज्ञान ले और इस पर रोक लगाए, वरना भारत की विकास गाथा पर ब्रेक लगना तो तय है. 

भारत की अर्थव्यवस्था इसलिए भी मजबूत दिखती है, क्योंकि यहां वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन सस्ता है. प्रोफेसर सूर्यभूषण कहते हैं कि पीपीपी में हम बेहतर हैं क्योंकि हमारे यहां बहुत सारी सेवाएं और वस्तुएं सस्ती हैं. हमारी इकोनॉमी का आकार भी बड़ा है. वह कहते हैं, "हमारी सबसे बड़ी चुनौती है कि प्रति व्यक्ति आय बढ़े. जैसे ही लोगों के पास पैसा आएगा, वह खर्च करेंगे और अर्थव्यवस्था चक्रीय तरीके से बढ़ती चली जाएगी. हमें शिक्षा और कौशल विकास में बड़ी मात्रा में निवेश करना चाहिए, नए शहर बनाने चाहिए ताकि ग्रामीण इलाकों की आय बढ़े. नए घर, होटल, हॉस्पिटल, स्कूल, कॉलेज यानी कुल मिलाकर आधारभूत ढांचे का निर्माण ही रोजगार और धन को बढ़ावा देगा. मंडपम हों या नया संसद भवन, ये केवल शुरुआत है. पूरा भारत अभी नया बनना बाकी है. चीन ने आखिर इसी रास्ते का तो सहारा लिया था. जब इस तरह का निर्माण कार्य होगा तो नए कौशल की जरूरत होगी, लाखों लोग गांवों से शहरों की ओर आएंगे, विकास की राह पर चलेंगे. अगर हमने यह कर दिखाया और सतत विकास के अपने एजेंडे पर चले, तो जो गरीबी 2021 में लगभग 15 फीसदी रह गयी है, उसको पूरी तरह से मिटाया भी जा सकता है."

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