फिलहाल, देश में 'पवन' की बहुत 'हवा' है, यानी चर्चा है. वजह है, राजधानी दिल्ली की खराब हुई हवा. प्रदूषण के नित नए कीर्तिमान ढहते दिल्ली ने भले ही सुर्खियां बटोर रखी हैं, लेकिन भारत के बहुतेरे शहर सांस के लिए हांफ रहे हैं, क्योंकि सबकी 'हवा' खराब हो गयी है. मानक स्तर तो कब का पीछे छूट चुका, अब हम केवल जहर पी रहे हैं. प्रदूषण के बढ़ते आकार और प्रकार के दैत्य ने हमें पर्याप्त डरा दिया है और इसीलिए अब रीन्यूएबल एनर्जी, ग्रीन एनर्जी, रिसाइक्ल आदि पर खूब बात हो रही है. भारत ने अपना कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हो या एमडीजी (मिलेनियल डेवलपमेन्ट गोल्स) यानी सहस्राब्दी के लक्ष्य, उसमें प्रदूषण को कम करना बड़ी चुनौती के तौर पर देखा है. ऐसे में पवन ऊर्जा का खूब जिक्र हो रहा है, काम हो रहा है. 


पवन ऊर्जा का हो रहा प्रसार


हरेक साल, 2000 से 2022 तक, भारत ने अपनी पवन ऊर्जा में 22 फीसदी की दर से बढ़ोतरी की है. वहीं सौर ऊर्जा में यह बढ़ोतरी 18 फीसदी हुई है. हरित और स्वच्छ ऊर्जा के साथ ही रीन्यूएबल एनर्जी के प्रति भारत की प्रतिबद्धता ही है कि 2022 में भारत की बिजली में सौर और पवन ऊर्जा का योगदान 9 फीसदी हो गया था. भारत ने अपनी पवन ऊर्जा को लगभग पांच गुणा बढ़ा लिया है और इसकी सौर क्षमता को पिछले छह वर्षों में दोगुना कर लिया है. यह दिखाता है कि भारत प्रदूषण को लेकर कितना गंभीर है और इसने कोयले से मिलने वाली ऊर्जा से तेज रफ्तार से रीन्यूएबल एनर्जी को बढ़ाया है. भारत ने स्वच्छ ऊर्जा में ट्रांजिशन यानी संक्रमण के लिए महत्वाकांक्षी योजना बनायी है. इसमें बड़ी भूमिका ऑटोमोबाइल उद्योग की रहनेवाली है.



2015 से 2022 के दौरान इलेक्ट्रिक मोटरबाइक और स्कूटी की बिक्री 3000 फीसदी बढ़ी है. देश में अभी पवन ऊर्जा में वर्ष 2024 तक 13.4 गीगावाट की परियोजनाओं के स्थापित होने की आशा है. हालांकि, इसके दो साल तक इसके घटने की भी संभावना है. 2017 से धीमी रफ्तार में चल रहा पवन ऊर्जा का कार्यक्रम अब हाइब्रिड-फॉर्म में चलने की उम्मीद है, यानी एक साथ सौर और पवन ऊर्जा के संयंत्र लगाए जा सकते हैं.


भारत कार्बन उत्सर्जन को कम करके स्वच्छ ऊर्जा का अपना लक्ष्य पाना चाहता है. भारत ने 2030 ईस्वी तक कुल उत्सर्जन को 1 खरब टन तक कम करने का लक्ष्य रखा है. इसके अलावा नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाकर 500 गीगाबाइट्स करने को कहा है. सकल घरेलू उत्पाद में भी कार्बनिक उत्सर्जन की सघनता को 2030 तक 45 फीसदी कम करने का लक्ष्य रखा है. नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक इस तरह हम 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा की जरूरतों का 50 फीसदी लक्ष्य भी हासिल कर लेंगे. 




चुनौतियां और आगे की राह

 

फिलहाल भारत में पवन ऊर्जा के दो प्रकार हैं. पहला तो तटवर्ती पवन फार्म के रूप में है, जो जमीन पर होता है और पवन टार्बाइनों के रूप में स्थापित किया जाता है. दूसरे को अपतटीय पवन फार्म कहते हैं, जो जलवाले निकायों के पास या उसमें ही स्थित हैं. भारत में कुल 60 गीगावाट तक की पवन ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है. भारत में इस क्षमता को बढ़ाया भी जा सकता है, अगर पुराने पवन ऊर्जा स्टेशनों को पवन टर्बाइनों से बदल दिया जाए.

 

अभी तक भारत में इस क्षेत्र का पर्याप्त दोहन नहीं किया गया है.  चूंकि दुनिया में भी इस क्षेत्र में खोज और शोध अभी प्रारंभिक अवस्था में ही है, इसलिए भारत के पास यह मौका है कि वह इसमें लीड ले सकता है. भारत का समुद्री क्षेत्र बहुत बड़ा है, लगभग साढ़े सात हजार किलोमीटर लंबी इसकी तटरेखा है और यहां इसके विकास के पर्याप्त अवसर हैं. चेन्नई स्थित राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान का दावा है कि गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से तमिलनाडु तक पवन ऊर्जा के क्षेत्र में व्यापक संभावनाएं हैं, क्योंकि यहां पवन का निरंतर प्रवाह मिलता है. फिलहाल देश में तमिलनाडु पवन ऊर्जा का सबसे बड़ा उत्पादक है. 


भारत के पास चुनौती यह है कि  पवन ऊर्जा बाज़ार गुजरात और तमिलनाडु के आसपास पवन परियोजनाओं तक केंद्रित है. ये जगहें सबसे मजबूत संसाधन क्षमता से लैस हैं और यहां जमीन की लागत सबसे कम हैं. भारत को इस क्षेत्र में लागत को कम करना होगा, जगहों का चुनाव करना होगा और इसको स्पर्द्धात्मक बनाना होगा, ताकि बाकी राज्य भी इसको अपनाएं और यह सौर ऊर्जा के लिहाज से भी प्रतिकूल न पड़े, अनुकूल हो.


तभी भारत अपना लक्ष्य पा सकेगा. भारत इस मामले में वियतनाम से सीख लेनी चाहिए जिसने चार वर्षों यानी 2018 से 2022 के बीच उसने अपनी सौर क्षमता 18,380 फीसदी बढ़ा ली है. है न यह अद्भुत और अविश्वसनीय...अब वियतनाम दुनिया में सबसे अधिक इलेक्ट्रिक मोटरबाइक और स्कूटर रखने के मामले में दूसरे स्थान पर है.