कोविड महामारी के बाद वर्क फ्रॉम होम कल्चर ने कामकाज की दुनिया की परिभाषा ही बदल दी. जो व्यवस्था कभी मजबूरी मानी जाती थी, वही अब कई कंपनियों की स्थायी नीति बन चुकी है. घर से काम करने से समय और यात्रा का खर्च बचा, वर्क लाइफ बैलेंस बेहतर हुआ और डिजिटल टूल्स पर निर्भरता बढ़ी. हालांकि इसके साथ काम और निजी जीवन की सीमाएं धुंधली होने, टीमवर्क में दूरी और मानसिक दबाव जैसी चुनौतियां भी सामने आईं. कुल मिलाकर कोविड के बाद वर्क फ्रॉम होम ने काम करने का नजरिया पूरी तरह बदल दिया. हालांकि अब ज्यादातक कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम कल्चर को खत्म कर दिया है. 

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ABP Network के इवेंट Entrepreneurship Conclave में Smartworks के Co-Founder हर्ष बिनानी ने वर्क फ्रॉम होम कल्चर पर बात की और बताया कि यह फ्यूचर क्यों नहीं बन सकता है और कॉस्ट कटिंग के लिए कंपनियां इस पर फोकस आखिर क्यों नहीं कर रही हैं. 

20 साल बाद वर्कप्लेस कैसे होगा डेवलप?

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Smartworks के Co-Founder हर्ष बिनानी से सवाल किया गया कि क्या आने वाले 20 साल में वर्कप्लेस किस तरीके से डेवलप होगा, जैसे कि इस वक्त तो ज्यादातर फिजिकल मोड में चल रहा है, लेकिन क्या आगे आने वाले वक्त में हाइब्रिड मोड या किसी और तरीके से भी विकसित हो सकता है? इस बारे में बात करते हुए हर्ष बिनानी ने कहा कि बदलाव तो होता ही रहेगा. आज के दिन के भारतीय युवा को दुनिया के बारे में पता है, वो जानता है गूगल का ऑफिस सैन फ्रांसिस्को में जैसा है वैसा ही उसे दिल्ली या पुणे में भी चाहिए. तो आज के समय में वक्त बदल रहा है. आने वाले 20 सालों में यह अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है कि क्या होगा. 

भारत में वर्क फ्रॉम होम क्यों नहीं है फ्यूचर?

हर्ष बिनानी ने आगे कहा कि आने वाले समय में ह्यूमन कनेक्शन में कोई बदलाव नहीं होगा. भारत पूरी तरह से वर्क फ्रॉम होम के लिए नहीं बना है. भारत में हमेशा ह्यूमन कनेक्शन होना जरूरी रहता है. कोविड के बाद एक बड़ा दौर चला था, जहां वर्क फ्रॉम होम का प्रचलन बहुत रहा. लेकिन अब अगर आप 2-3 साल में देखेंगे तो ऑफिस से रेगुलर काम करना और हाइब्रिड मोड नियमित व्यवस्था बन चुका है. अब वर्क फ्रॉम होम फ्यूचर नहीं है, लेकिन हां अब यह हाइब्रिड मोड में जरूर बदल चुका है. इसके अलावा वर्क प्लेस में एक्सपीरियंस और आने वाले वक्त में वर्कप्लेस की ओनरशिप के बजाय उसकी लीजिंग होगी.

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