Rupee VS Dollar: 15 दिसंबर को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90.63 के अब तक के सबसे निचले स्तर पर फिसल चुका है. इससे एक बार फिर करेंसी की ताकत और उसके असल जिंदगी पर पड़ने वाले असर पर बहस छिड़ चुकी है. लेकिन सोचिए ऐसे हालातो से उलट क्या हो अगर ₹1, $1 के बराबर हो जाए. आइए जानते हैं कि अगर ऐसा हो जाए तो देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा और iPhone जैसी लक्जरी आइटम्स कितनी सस्ती हो जाएंगी.
कितना सस्ता हो जाएगा iPhone
अगर रुपया डॉलर के बराबर हो जाता है तो भारत में एक iPhone की कीमत लगभग अमेरिका में iPhone की कीमत के बराबर हो जाएगी. जैसे अगर iPhone 17 की कीमत यूनाइटेड स्टेट्स में $799 है तो भारत में इसकी कीमत लगभग ₹799 होगी. इसका सीधा सा मतलब है कि जो iPhone अभी ₹70000 या ₹80000 रुपए में बिक रहा है, उसकी कीमत कुछ ₹700-₹800 हो जाएगी.
इंपोर्ट काफी सस्ते हो जाएंगे
डॉलर और रुपए में बराबरी आते ही सभी इंपोर्ट काफी सस्ते हो जाएंगे. कच्चे तेल का इंपोर्ट आज की कीमतों के मुकाबले काफी कम कीमत पर होगा. इसके बाद पेट्रोल और डीजल की कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिलेगी. सोना, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल उपकरण, विमान और भारी मशीनरी काफी ज्यादा सस्ती हो जाएंगी. इसी के साथ विदेशी शिक्षा, विदेशी यात्रा और अंतरराष्ट्रीय खरीदारी के खर्चों में भी गिरावट देखने को मिलेगी.
एक्सपोर्ट रातों-रात ठप हो जाएंगे
जहां इंपोर्ट में तेजी आएगी वहीं एक्सपोर्ट को भारी झटका झेलना पड़ेगा. भारतीय सामान विदेशी खरीदारों के लिए काफी महंगा हो जाएगा, जिस वजह से वे ग्लोबल मार्केट में मुकाबला नहीं कर पाएंगे. टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल, ऑटो कॉम्पोनेंट्स, कृषि और हैंडीक्राफ्ट जैसे सेक्टर को खरीदार ढूंढने मुश्किल हो जाएंगे. एक्सपोर्ट पर निर्भर इंडस्ट्रीज पूरी तरह से या तो बंद हो जाएंगी या फिर काफी धीमी हो जाएंगी. इस वजह से भारत का व्यापार घाटा तेजी से बढ़ेगा.
नौकरियों और बिजनेस पर गंभीर असर
भारत का आईटी और सर्विस सेक्टर जो डॉलर में कमाता है लेकिन सैलरी रुपए में देता है, उसे सबसे ज्यादा नुकसान झेलना पड़ेगा. लागत का कोई फायदा ना होने की वजह से ग्लोबल कंपनियां अपने ऑपरेशन सस्ते देशों में शिफ्ट कर देंगी. भारत की सबसे बड़ी ताकत में से एक है यहां ऑपरेशन लागत का कम होना. अब अगर रुपया डॉलर के बराबर हो जाता है तो भारत तुरंत ग्लोबल इन्वेस्टर के लिए महंगा डेस्टिनेशन बन जाएगा. विदेशी डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट धीमा हो जाएगा, पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स पैसा निकाल लेंगे और कैपिटल इनफ्लो कमजोर हो जाएगा.
पर्सनल फाइनेंस में फायदे और नुकसान
कुछ कंपनियों और व्यक्तियों को फायदा होगा. जिन कंपनियों ने डॉलर में लोन लिया है वह उन्हें सस्ते में चुका पाएंगे जिससे कर्ज का दबाव कम होगा. इंपोर्टेड लग्जरी सामान की खपत बढ़ जाएगी. लेकिन आम नागरिकों के लिए बढ़ती बेरोजगारी और सिकुड़ते घरेलू उद्योगों से फाइनेंशियल असुरक्षा बढ़ सकती है. वक्त के साथ इनकम ग्रोथ धीमी होती जाएगी और असामान्यता बढ़ सकती है.
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