G20 का सफलतापूर्वक समापन भारत में हुआ. भारत में लगभग 200 से अधिक बैठकें इस संदर्भ की अलग-अलग शहरों में हुईं पूरे भारत में, और अंत में सर्वसम्मति से एक प्रपत्र जिसे जी20 घोषणापत्र भी कहते हैं, वह भी जारी किया. इसकी एक खास बात जो रही कि इस मीटिंग से इतर एक इंडिया-मिडिल ईस्ट- यूरोपियन इकोनॉमिक कॉरिडोर पर भी सहमति रही, जिस पर भारत, सऊदी अरब, यूरोपियन यूनियन और अमेरिका मिलकर काम कर रहे हैं. इसको बीआरआई का जवाब भी माना जा रहा है और इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर यानी IMEC को एक ऐतिहासिक समझौता भी बताया जा रहा है. इस परियोजना के एमओयू पर 9 सितंबर 2023 को हस्ताक्षर भी हो चुका है. 


काफी अहम है IMEC  


ये एक बहुत ही महत्वपूर्ण कॉरिडोर है. अगर ये बनता है तो फिर यहां से हमारा सामान दुबई, सऊदी अरब से कनेक्ट हो जाएगा. फिर वहां से जॉर्डन होता हुआ हायफा पोर्ट से कनेक्ट हो जाएगा. बाद में इजिप्ट को भी कनेक्ट किया जाएगा. हायफा पोर्ट या बंदरगाह जो कि इजराइल में है, वहां से जब हम जुड़ जाएंगे, तो फिर काफी आसानी होगी. हायफा पोर्ट जो है वो मेडिटेरेनियन यानी पूर्व भूमध्यसागर में पड़ता है. वहां अगर हमारा सामान पहुंच जाता है, तो बहुत आसानी से फिर यूरोप पहुंच जाएगा. अभी जो हमारा सामान यूरोप जाता है, वो लाल सागर, लाल सागर से बाब-अल- मंदाब, फिर वहां से स्वेज नहर और फिर वह नहर उसे भूमध्यसागर से जोर देती है. जिसका बड़ा हिस्सा यूरोप में है, इटली, फ्रांस वगैरह उधर से होते हैं और इधर से फिलीस्तीन, इजरायल और लेबनान इत्यादि बहुतेरे अरब देश जुड़ते हैं. इस तरह से हमारा रूट और शॉर्ट हो जाएग. ये जो प्लैन है, वह रेल, पाइपलाइन कनेक्टविटी वगैरह भी सोचा जाएगा. ये इस तरह से किया जाएगा कि हमारे यहां फ्यूचर में पाइपलाइन भी आ सके. इसके अलावा यह भी है कि सऊदी अरब ट्रेन के माध्यम से बहुत से देश को लिंक कर रहा है. सीरिया भी अपने आप को लिंक कर रहा है. इराक और तुर्की से यह जुड़ रहा है. इस तरह से ये एक रेल नेटवर्क बन जाएगा. रेल नेटवर्क पहले भी था लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के पहले जब लॉरेंस ऑफ अरेबिया वहां पर थे, उन्होंने मिलकर उसे तोड़ दिया था, ताकि तर्की की रसद, उसको सैन्य साजो-सामान वहां न पहुंच सके. तो, ये पूरा कॉरिडोर भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारा ट्रेड सभी देश से लगभग व्यापार बढ़ता चला जा रहा है.



इसमें हैं कुछ समस्याएं भी 


भारत का इस क्षेत्र के साथ बहुत पुराना संबंध है, चीन को तो मिडिल ईस्ट वाले आज के समय में भी नहीं जानते. न भाषा जानते हैं, न ही उनका कल्चर जानते हैं, न उनका धर्म जानते हैं. उनके लिए ये बिल्कुल नया है. जिस तरह से चीन बढ़ा रहा है खुद को, विस्तारवाद कर रहा है क्षेत्र के अंदर, उसकी उनको चिंता भी है. अरब देशों को और सेंट्रल एशिया के देशों को भी यह चिंता है. भारत का तो लंबे समय से घनिष्ठ संबंध रहा है. यूएई के साथ-साथ, सउदी अरब, बहरीन और इजिप्ट सहित अन्य देशों ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा है. भारत का हजारों वर्षों से इन देशों के साथ संबंध है और उसी को मजबूत किया जा रहा है. अब किसी को अच्छा लगे या बुरा, यह बिल्कुल ही अलहदा बात है. इसमें समस्या है कि गाजा में युद्ध चल रहा है. उस युद्ध के चलते जो अरब देश इजरायल के साथ अपना संबंध बना रहे थे, सउदी अरब को भी अब्राहम अकॉर्ड साइन करना था, वह भी खटाई में पड़ गया है. अब सउदी अरब का कहना है कि वह तब तक इस अकॉर्ड को नहीं जॉइन करेगा जब तक फिलीस्तीन को टू-नेशन थियरी के तहत अलग देश नहीं बना दिया जाता. 


भारत के लिए हालात ठीक ही हैं


भारत का जहां तक सवाल है, तो उसकी कनेक्टिविटी तो है. हम यूएई के साथ तो जुड़े हुए ही हैं. हमारी इराक से भी कनेक्टिविटी है. सउदी अरब से भी है. हम पानी के जहाज या हवाई जहाज से भी जा सकते हैं. हमारी समस्या ये है कि सामान को यूरोप तक कैसे पहुंचाएं? यूरोप और ईस्ट मध्य पूर्व, वह कॉरिडोर थोड़ा मुश्किल लग रहा है. पब्लिक ओपिनियन अभी इस वक्त इजरायल के खिलाफ जा रहा है. अरब देश भी खामोश बैठे हैं, इन चीजों पर बात नहीं कर रहे हैं. वे युद्ध को कंडेम कर रहे हैं और टू-स्टेट समाधान की बात कर रहे हैं. यही समस्या है, वरना अरब के देशों के साथ तो हमारे संबंध और कनेक्टिविटी तो बनी हुई ही है. सब कुछ ठीक रहा, तो जल्द ही ये कॉरिडोर भी बन जाएगा.