दिल्ली में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने देश के मौजूदा माहौल को लेकर कई तीखी टिप्पणियां कीं. उन्होंने कहा कि दुनिया के बड़े शहरों जैसे लंदन और न्यूयॉर्क में मुसलमानों को मेयर बनने का मौका मिलता है, लेकिन भारत में हालात ऐसे हो गए हैं कि यहां एक मुसलमान का किसी विश्वविद्यालय का कुलपति बनना भी मुश्किल बताया जाता है. मदनी ने तंज कसते हुए कहा कि अगर कोई मुसलमान किसी अहम पद तक पहुंच भी जाए, तो उसके साथ वही व्यवहार होता है जो आजम खान के साथ हुआ, आरोपों और मामले में उलझाकर जेल भेज दिया गया. 

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अब न्यूयॉर्क में जोहरान ममदानी तो मेयर बन गए हैं, लेकिन भारत में उनके नाम पर सियासत तेज हो गई है. आइए जानें कि देश में किन बड़े पदों पर मुस्लिम रह चुके हैं. 

भारत की राजनीति में अक्सर यह सवाल सामने आता है कि आखिर देश के सबसे बड़े पदों पर कौन-कौन लोग पहुंचते हैं. लेकिन जब बात आती है मुस्लिम नेताओं की भूमिका पर, तो इस कहानी में कई अनकहे मोड़ छुपे होते हैं. बड़े-बड़े पदों पर बैठे नाम बहुत हैं, लेकिन लोग उनमें से ज्यादातर को जानते भी नहीं हैं.

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राष्ट्रपति पद पर मुस्लिम समुदाय की मजबूत उपस्थिति

भारत ने आजादी के बाद अब तक तीन मुस्लिम राष्ट्रपति देखे हैं. पहले राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन थे, जिन्हें शिक्षा और पारदर्शी प्रशासन के लिए याद किया जाता है. दूसरे फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल के दौर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. तीसरे और सबसे लोकप्रिय नाम डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का है, जिन्होंने वैज्ञानिक उपलब्धियों और सादगी से करोड़ों भारतीयों का दिल जीता है. 

उपराष्ट्रपति पद पर भी दिखी प्रभावी भूमिका

मुस्लिम समुदाय की मौजूदगी उपराष्ट्रपति के पद पर भी दिखाई देती है. हामिद अंसारी दो बार उपराष्ट्रपति रहे, जो अब तक का एक बड़ा रिकॉर्ड है. इसके अलावा जाकिर हुसैन भी इस पद पर रहने के बाद राष्ट्रपति बने. राज्यसभा की कार्यवाही को व्यवस्थित और संतुलित रूप में चलाने की क्षमता इन नेताओं की खास पहचान रही है.

न्यायपालिका में दो मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश

देश की सर्वोच्च न्यायपालिका में मुस्लिम समुदाय की मौजूदगी भी उल्लेखनीय रही है. भारत में अब तक दो मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश (CJI) हुए हैं, पहले हैं जस्टिस एम. हिदायतुल्लाह, जिन्हें उत्कृष्ट कानूनी बुद्धिमत्ता के लिए जाना जाता है. दूसरे जस्टिस अल्तमस कबीर, जिन्होंने कई ऐतिहासिक फैसलों में नेतृत्व किया. इन दोनों ने न्यायिक स्वतंत्रता और संवैधानिक मर्यादा को हमेशा प्राथमिकता दी.

चुनाव आयोग की कमान भी मुस्लिम नेतृत्व के हाथ में रही

भारत के पहले मुस्लिम मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी रहे. उन्होंने बड़े स्तर पर वोटर जागरूकता अभियान चलाए और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रक्रिया को मजबूती दी. लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार यानी चुनाव में उनकी भूमिका बेहद अहम रही. 

कई राज्यों में मुस्लिम मुख्यमंत्री भी बने

देश के कई राज्यों में मुस्लिम नेताओं को नेतृत्व करने का मौका मिला, जैसे- अब्दुल रहमान अंतुले- महाराष्ट्र, अब्दुल गफूर- बिहार, शेख अब्दुल्ला- जम्मू-कश्मीर के सबसे प्रभावशाली नेता रहे हैं. इन नेताओं ने न सिर्फ प्रशासन संभाला, बल्कि राज्य की राजनीतिक दिशा भी बदल दी. 

केंद्र सरकार में बड़े मंत्रालय का जिम्मा भी संभाला

मुस्लिम नेताओं ने केंद्र सरकार के अहम मंत्रालय भी संभाले. इनमें सलमान खुर्शीद- कानून और विदेश राज्य मंत्री, नजमा हेपतुल्ला- अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री, गुलाम नबी आजाद- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री. इन सभी नेताओं ने अपनी सक्रिय भूमिका से कई नीतिगत सुधारों को दिशा दी.

राज्यपाल के पद पर भी सक्रिय रहे मुस्लिम चेहरे

भारत के कई राज्यों में मुस्लिम राज्यपाल भी रह चुके हैं, जैसे मणिपुर में नजमा हेपतुल्ला, अजीज कुरैशी- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मिजोरम के राज्यपाल रहे, अखलाकुर रहमान किदवई- बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और राजस्थान के राज्यपाल रहे. राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद को गरिमा और संतुलन के साथ निभाने में इन नेताओं ने अहम योगदान दिया.

विज्ञान, सेना और प्रशासन में भी मजबूत पकड़

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम- ISRO और DRDO में सबसे शीर्ष पदों पर रहे. सेना में भी कई मुस्लिम अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल, एयर मार्शल और एडमिरल तक पहुंचे. यह इस बात का प्रमाण है कि रणनीति, विज्ञान और राष्ट्रीय सुरक्षा में भी मुस्लिम समुदाय की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है. 

संसद में भी मजबूत नेतृत्व

हामिद अंसारी- राज्यसभा के उपसभापति, अहमद पटेल- संसद के सबसे प्रभावशाली रणनीतिकार, गुलाम नबी आजाद- राज्यसभा में विपक्ष के नेता, सैयद शहाबुद्दीन- संसद में सबसे मुखर आवाजों में से एक थे. इन नेताओं ने नीतियों, बहस और राजनीतिक दिशा पर बड़ा असर डाला था. 

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