आपके साथ भी कभी न कभी ऐसा हुआ होगा कि किसी प्यार से बच्चे को देखते ही उसे कसकर पकड़ने या गाल खींचने का मन कर गया होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह कोई शरारत नहीं बल्कि हमारे दिमाग की एक खास प्रक्रिया है, जिसे क्यूट एग्रेसन या कडल इफेक्ट कहा जाता है. दरअसल जब हम किसी बहुत प्यारी चीज जैसे छोटे बच्चों को देखते हैं, तो अचानक हमारा दिमाग डोपामाइन नाम का फील गुड हार्मोन रिलीज करता है.
यह वहीं हार्मोन है जो हमें टेस्टी खाना खाने या खुशी मिलने पर महसूस होता है. कई बार यह पॉजिटिव फिलिंग्स इतनी ज्यादा हो जाती है कि दिमाग को उन्हें कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में दिमाग संतुलन बनाने के लिए हमें उल्टी प्रतिक्रिया देता है, जैसे बच्चों को कसकर पकड़ने या हल्का काटने का मन करता है.
क्या कडल इफेक्ट में होता है नुकसान पहुंचाने का इरादा
कडल इफेक्ट को लेकर एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इन हरकतों के पीछे किसी को चोट पहुंचाने का इरादा नहीं होता है. यह बस प्यार और खुशी की तेज फिलिंग्स को बैलेंस करने का तरीका है. यही वजह है कि छोटे बच्चों के गाल देखकर उन्हें खींचने का मन होता है या फिर किसी पपी को गोद में लेकर कसकर पकड़ने का मन कर जाता है. इसके अलावा इसे लेकर कुछ रिसर्च भी बताती है कि जब रिवॉर्ट सिस्टम एक्टिव होता है तो हमें किसी चीज को जोर से पकड़ने, दबाने या चबाने जैसी इच्छा होती है. लेकिन साथ ही दिमाग का इमोशनल रेगुलेशन सेंटर भी एक्टिव हो जाता है, जिससे लोग हद से बाहर नहीं जाते है. यही वजह है कि यह फीलिंग सुरक्षित और सामान्य मानी जाती हैं.
क्या हर कोई महसूस करता है कडल इफेक्ट
एक्सपर्ट्स के अनुसार करीब 50 से 60 प्रतिशत लोग कडल इफेक्ट महसूस करते हैं. हालांकि कुछ लोगों को यह एहसास नहीं होता है. इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी फीलिंग में कमी है. जिन लोगों को कडल इफेक्ट का एहसास नहीं होता है, वह अपनी फिलिंग्स दिखाने के लिए अलग तरीका अपनाते हैं.
क्यों जरूरी है कडल इफेक्ट को समझना
एक्सपर्ट्स का कहना है कि कडल इफेक्ट पूरी तरह नॉर्मल प्रक्रिया है. यह बताती है कि हमारा दिमाग पॉजिटिव फिलिंग्स को कंट्रोल करना जानता है. लेकिन अगर इंसान अपनी तेज इच्छाओं पर तुरंत काबू न पाए तो कभी-कभी उसकी फिलिंग्स अलग हो सकती है.
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