धरती पर मौजूद इंसानों के डिएनए को जब आप देखेंगे तो पता चलेगा कि 99.9 फीसदी इंसानों का डीएनए सेम है. लेकिन इसके बावजूद भी लोगों में काफी फर्क देखने को मिलता है. खासतौर से उनकी त्वचा की रंगत में. यानी जब आप ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे जगहों के लोगों को देखेंगे तो वहां के लोग गोरे दिखेंगे. वहीं जब आप अफ्रकी देशों को देखेंगे तो वहां के लोग आपको काले दिखेंगे. अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है. इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण क्या है.


इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण


त्वचा की रंग के पीछे जो चीज काम करती है उसे मेलेनिन कहा जाता है. किसी भी शरीर के रंग के पीछे इसी का हाथ होता है. यानी अगर आपके शरीर के भीतर इसकी मात्रा बहुत ज्यादा है तो आपकी त्वचा का रंग ज्यादा डार्क होगा, वहीं अगर आपके शरीर में मेलेनिन की संख्या कम है तो आपकी त्वचा का रंग साफ होगा. अफ्रीका में रहने वाले लोगों के शरीर में मेलेनिन ज्यादा होता है, यही वजह है कि उनकी त्वचा का रंग दूसरे देशों के लोगों की त्वचा के रंग से ज्यादा डार्क होता है.


गर्मी और सूरज की रौशनी भी है कारण


एक्सपर्ट्स मानते हैं कि जब आप सूरज की रौशनी में ज्यादा रहते हैं तो आपकी त्वचा का रंग ज्यादा काला हो जाता है. इसके पीछे की वजह मेलेनिन है. दरअसल, अफ्रीका के लोग जिस भू-भाग में रहते हैं वहां गर्मी बहुत पड़ती है. इसके साथ ही धरती के उस हिस्से में सूरज की हानिकारक अल्ट्रावायलट किरणे भी इंसानों के शरीर पर पड़ती हैं, जिसकी वजह से अफ्रीकी लोगों के अंदर मेलेनिन ज्यादा बनता है और उनकी त्वचा रंग ज्यादा डार्क हो जाती है. वहीं जो लोग ठंडे देश में रहते हैं वहां के लोगों के शरीर में मेलेनिन की मात्रा कम बनती है इसलिए इनका रंग साफ होता है.


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