Treaty Of Purandar: भारत का इतिहास ऐतिहासिक घटनाओं और युद्धों से भरा हुआ है. इन्हीं में से एक घटना है पुरंदर की संधि. 1665 में साइन की गई इस संधि में छत्रपति शिवाजी महाराज ने 23 किले मुगलों को सौंप दिए थे. लेकिन यह किसी हार का संकेत नहीं था, बल्कि मराठा राजा द्वारा अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए एक रणनीतिक कदम था. आइए जानते हैं क्या थी यह संधि.
पुरंदर की संधि क्या थी
11 जून 1665 को छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल सेनापति राजा जय सिंह प्रथम के बीच पुरंदर की संधि हुई थी. इस समझौते के मुताबिक छत्रपति शिवाजी महाराज को अपने 35 में से 23 किले मुगलों को सौंपने थे. शिवाजी महाराज ने 35 में से 23 किले मुगलों को दे दिए और सिर्फ 12 अपने पास रखे.
यह संधि क्यों की गई
दरअसल यह संधि एक रणनीतिक स्थिति की वजह से की गई थी. जय सिंह प्रथम ने पुरंदर में छत्रपति शिवाजी के मुख्य किले को चारों तरफ से घेर लिया था. इसी के साथ बाकी मराठा किले भी मुगल सेना के खतरे में थे. शिवाजी और उनका परिवार खतरे में था. अपनी जनता की रक्षा के लिए शिवाजी ने संधि पर हस्ताक्षर कर दिए.
पुरंदर की संधि की मुख्य शर्तें
शिवाजी ने अपने 35 में से 23 किले मुगलों को सौंप दिए थे. इसी के साथ उन्होंने मुगल साम्राज्य को लगभग चार लाख रुपये सालाना राजस्व वाली भूमि भी दी. इतना ही नहीं बल्कि शिवाजी के पुत्र संभाजी को मुगल दरबार में 5000 घोड़ों की मनसबदारी दी गई. इसी के साथ शिवाजी ने आवश्यकता पड़ने पर मुगलों को सहायता देने के लिए सहमति भी दिखाई.
मराठा साम्राज्य की स्थापना
यह समझौता जैसा देखने में लग रहा था वैसा नहीं था. शिवाजी ने इस समय का इस्तेमाल मुगल सैन्य रणनीति का अध्ययन करने पर भविष्य के अभियानों की योजना बनाने के लिए किया. 1677 तक शिवाजी ने अपने सभी किलों को वापस जीत लिया और एक पूरी तरह से स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की स्थापना की. 1674 में उनका छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक किया गया. पुरंदर की संधि कोई हार नहीं थी बल्कि शानदार राजनीतिक चाल मानी जाती है.
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