भारत में फिलहाल अलग-अलग धर्मों के हिसाब से शादी की उम्र अलग-अलग है. जैसे हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के अनुसार, लड़की की उम्र 18 और लड़के की उम्र 21 साल होनी चाहिए. जबकि भारतीय ईसाई विवाह कानून 1872 के अनुसार, शादी के वक्त लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल से नीचे नहीं होनी चाहिए. पारसी धर्म में भी विवाह की उम्र यही है. लेकिन इस्लाम में शादी के लिए तय की गई उम्र की सीमा इससे अलग है.


मुस्लिम कब कर सकते हैं शादी


मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अनुसार, जब किसी लड़की या लड़के में यौवन यानी प्यूबर्टी की शुरुआत हो जाती है (ज्यादातर बार 15 साल की उम्र तक) तो ये मान लिया जाता है कि लड़का या लड़की शादी के लिए तैयार है. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फ़ारूक़ी कहते हैं कि इस्लाम एक प्राकृतिक धर्म है, यानी यहां तमाम चीज़ें प्रकृति से संबंधित हैं और वैसे ही धर्म में इज़ाज़त दी गई है. यही वजह है कि इस्लाम में शादी के लिए प्यूबर्टी की शुरुआत को आधार माना गया है.


फिर उम्र कैसे तय होती है?


प्यूबर्टी की शुरुआत जरूरी नहीं है एक ही उम्र में हो. ये अलग-अलग लड़कियों में अलग-अलग उम्र में हो सकती है. ऐसे में सवाल उठता है कि फिर एक उम्र कैसे तय होती है. अब यहां इमामों की राय आती है. ऐसे तो इस्लाम में कई इमाम हुए, लेकिन सुन्नी मुस्लिम समाज मोटे तौर पर चार इमामों की कही बातों को ज्यादा तरजीह देता है. इसमें इमाम शाफई, इमाम हंबली, इमाम मालिकी और इमाम अबू हनीफ़ा हैं. जबकि शिया मुसलमान इमाम जाफर अल सादिक को ज्यादा मानते हैं.


इमाम शाफई और इमाम हंबली के अनुसार, लड़के और लड़कियों की शादी की सही उम्र 15 साल है. जबकि, इमाम मालिकी के अनुसार, शादी की सही उम्र 17 साल है. वहीं इमाम अबू हनीफा के अनुसार, लड़कों के लिए शादी की सही उम्र 12 से 18 साल और लड़कियों के लिए शादी की सही उम्र 9 से 17 साल है. दरअसल, इमाम अबू हनीफा मानते हैं कि हर लड़के और लड़की के बालिग होने की उम्र अलग-अलग हो सकती है, इसलिए लड़के, लड़की के बालिग होने पर ही इनकी शादी करनी चाहिए. वहीं इमाम जाफर अल सादिक के मुताबिक, लड़कों के शादी की सही उम्र 15 साल और लड़कियों के शादी की सही उम्र 9 साल है.


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