आज के समय में लगभग हर चीज पर टैक्स देना पड़ता है. चाहे वो सैलरी पर हो, सड़क पर गाड़ी चलाने पर हो या फिर कोई सामान खरीदने पर. लेकिन यह व्यवस्था अचानक से नहीं बनी. इसकी जड़ें इतिहास में गहरी हैं. मुगलों के जमाने में भी टैक्स सिस्टम मौजूद था और उस दौर की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा इन्हीं टैक्स पर टिका था.
उस समय किसानों से लेकर व्यापारियों तक सब पर अलग-अलग तरह के टैक्स लगाए जाते थे. लेकिन कई लोगों के मन में यह सवाल भी आता है कि क्या आज के समय की तरह मुगलों के वक्त में भी टोल टैक्स देना पड़ता था. क्या तब भी किसी तरह के टोल प्लाजा हुआ करते थे. कैसा था मुगलों के वक्त टैक्स सिस्टम चलिए आपके बताते हैं.
क्या देना पड़ता था मुगलों के समय टोल टैक्स?
मुगलों के समय टैक्स सिस्टम काफी सख्त और व्यवस्थित था. आमदनी का सबसे बड़ा हिस्सा जमीन से आता था जिसे ज़ब्त प्रणाली कहा जाता था. किसानों को अपनी फसल का एक हिस्सा सरकार को देना पड़ता था. कभी अनाज के रूप में तो कभी नकद में. इसके अलावा व्यापार पर भी टैक्स लगता था. एक जगह से दूसरी जगह माल ले जाने वाले व्यापारी रास्ते में कई बार टैक्स चुकाते थे.
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यात्रियों और कारोबारियों से सड़क या नदी पार करने पर भी टैक्स लिया जाता था. जो आज के टोल टैक्स जैसा कहा जा सकता है. सोना, नमक, घी और कपड़े जैसी जरूरी चीजों पर भी अलग-अलग टैक्स लगाए जाते थे. यानी कह सकते हैं मुगलों के दौर में भी टोल टैक्स लगता था. लेकिन आज के समय जैसी पारदर्शिता नहीं हुआ करती थी.
ऐसा था पूरा टैक्स सिस्टम
मुगल समय में टैक्स कई तरह के होते थे. किसानों से उनकी फसल का लगभग एक-तिहाई हिस्सा लिया जाता था. कुछ जगहों पर यह टैक्स नकद में भी वसूला जाता था. व्यापारियों से माल के हिसाब से टैक्स लिया जाता था. जैसे मसालों और कपड़े पर ज्यादा और अनाज जैसी जरूरी चीजों पर कम. कारीगरों और दस्तकारों से उनके काम या पेशे के अनुसार टैक्स वसूला जाता था.
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पशुपालकों से मवेशियों पर टैक्स देना पड़ता था. जैसे गाय, भैंस या ऊंट पर तय रकम ली जाती थी. कुछ इलाकों में शादी-ब्याह और त्योहारों पर भी खास टैक्स लिया जाता था. मतलब उस दौर का टैक्स सिस्टम काफी फैला हुआ था और हर इंसान किसी न किसी रूप में इसके दायरे में आता था.
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