Kafala System: कई दशकों से कफाला सिस्टम कई मध्य पूर्वी देशों में लेबर स्ट्रक्चर का एक केंद्र रहा है. शोषण को बढ़ावा देने और प्रवासी श्रमिकों की स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए इसकी वैश्विक आलोचना भी हुई है. करीब 50 साल बाद सऊदी अरब ने इसे आधिकारिक तौर पर समाप्त कर दिया है, लेकिन इसके बावजूद भी कई खाड़ी क्षेत्र में इस व्यवस्था के निशान अभी भी मौजूद हैं. आज हम जानेंगे कि कफाला सिस्टम क्या होता है और साथ ही यह भी कि यह सिस्टम अभी भी किन देशों में लागू है.
क्या है कफाला सिस्टम
कफाला सिस्टम जिसका अरबी में मतलब स्पॉन्सरशिप होता है एक ऐसी व्यवस्था है जो किसी विदेशी कर्मचारियों की कानूनी स्थिति को सीधे उसके नियोक्ता या फिर कफील से जोड़ता है. इस व्यवस्था को 1950 के दशक में तब अस्तित्व में लाया गया था जब खाड़ी अर्थव्यवस्थाएं प्रवासी श्रमिकों पर काफी ज्यादा निर्भर होने लगी. इस व्यवस्था ने सरकारों के लिए प्रशासन को सरल तो बनाया ही साथ ही नियोक्ताओं को काफी ज्यादा शक्तियां प्रदान की. इसमें श्रमिकों की आवाजाही, रोजगार और यहां तक कि देश छोड़ने के उनके अधिकार को भी नियंत्रित किया गया. श्रमिक अक्सर अपने नियोक्ता की अनुमति के बिना नौकरी बदलने या फिर घर लौटने में असमर्थ होते थे. यही वजह थी कि वहां श्रमिकों के साथ दुर्व्यवहार और शोषण किया जाता था.
इसे क्यों लागू किया गया
इसे लागू करने के पीछे उद्देश्य यह था कि विदेशी श्रमिकों की भर्ती प्रक्रिया को कौशल बनाया जाए और साथ ही नौकरशाही की जिम्मेदारियों को सरकारों से हटकर नियोक्ताओं पर डाला जाए. कफील से वीजा लेकर आवाज तक हर चीज संभालने की उम्मीद की जाती थी. कफील प्रभावी रूप से संरक्षक और नियंत्रक दोनों की भूमिका निभाता था. लेकिन वक्त के साथ-साथ यह एक ऐसी प्रणाली में बदल गई जिसने शोषण को बढ़ावा दिया. इसमें श्रम अधिकारों पर प्रतिबंध लगाए गए और श्रमिकों को ऐसी जबरदस्ती काम करने की परिस्थितियों में फंसा दिया गया जिनकी तुलना अब आधुनिक गुलामी से की जाती है.
किन देशों में यह व्यवस्था अभी भी चालू
हल्के सुधारों के बावजूद कतर में अभी भी कफाला सिस्टम मौजूद है. पहले श्रमिकों को नौकरी बदलने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र और देश छोड़ने के लिए एक निकास परमिट की जरूरत होती थी. हालांकि इनमें से कई प्रतिबंधों में अब ढील दे दी गई है लेकिन पूरी तरह से सुधार की तरफ धीरे-धीरे कदम बढ़ाए जा रहे हैं. न्यूनतम वेतन कानून और बेहतर नौकरी गतिशीलता को लागू कर दिया गया है लेकिन कार्यान्वयन अभी भी असंगत है.
इसी के साथ यूएई में एक श्रमिक का निवास उसके नियोक्ता पर ही निर्भर करता है. हालांकि श्रम कानून में यहां पर भी धीरे-धीरे बदलाव हो रहे हैं खासकर निजी क्षेत्र में. अब यहां पर कुछ शर्तों के तहत नियोक्ता बदलना संभव है. ठीक इसी तरह बहरीन में 2009 में इस व्यवस्था में आंशिक सुधार किया था. जिसमें अलग-अलग कंपनियों से प्रयोजन श्रम बाजार नियामक प्राधिकरण को हस्तांतरित किया गया था. लेकिन इस कदम के बावजूद भी यह व्यवस्था पूरी तरह से खत्म नहीं हुई और कई नियोक्ता अभी भी श्रमिकों की नौकरी परिवर्तन और निवास स्थान पर काफी ज्यादा अधिकार रखते हैं.
कुवैत में भी नियोक्ता अभी भी श्रमिकों के नौकरी परिवर्तन और देश छोड़ने पर पूरी तरह से नियंत्रण रखते हैं. बिना सूचना के नौकरी छोड़ने पर गिरफ्तारी या फिर डिपार्चर हो सकता है. हालांकि 2015 में एक घरेलू कामगार कानून पारित किया गया था लेकिन इसका प्रवर्तन भी सीमित ही रहा. यही हाल ओमान का भी है. हालांकि ओमान का दावा है कि उसने इस व्यवस्था को आधिकारिक रूप से समाप्त कर दिया है, लेकिन इसके बावजूद भी व्यवहार में कई नियोक्ता वही प्रतिबंध को लागू करते रहते हैं.
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