Submarine Engines: पनडुब्बी एक खास जलयान होती है जो सतह पर चलने वाले जहाज के विपरीत पानी के अंदर इस्तेमाल की जाती है. हर पनडुब्बी के मूल में उसका इंजन होता है. पनडुब्बियों के इंजन दो श्रेणियां में आते हैं. पहला परमाणु रिएक्टर इंजन और दूसरा गैर परमाणु इंजन. आज हम बात करने जा रहे हैं दुनिया के उन देशों के बारे में जो पनडुब्बियों के इंजन बनाते हैं. साथ ही हम यह भी जानेंगे कि इसमें भारत की स्थिति कैसी है.
वह देश जो परमाणु पनडुब्बियों के इंजन बनाते हैं
दुनिया में सिर्फ 6 ही देश परमाणु ऊर्जा से चलने वाले पनडुब्बी इंजन को बनाते हैं. यह रिएक्टर पनडुब्बियों को बिना ईंधन भरे सालों तक पानी के नीचे रहने, तेज गति से यात्रा करने और लगभग अदृश्य रहने की ताकत देते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका काफी लंबे समय से अपने प्रेशराइज्ड वॉटर रिएक्टर के साथ इस क्षेत्र में पहले स्थान पर है. यह इंजन वर्जीनिया श्रेणी की हमलावर पनडुब्बी और ओहियो श्रेणी की पनडुब्बियों के लिए बनाए जाते हैं.
इसी के साथ रूस भी अपने KTP-6-185SP रिएक्टरों के साथ बोरेई श्रेणी और यासेन श्रेणी की पनडुब्बियों को दशकों तक बिना ईंधन भरे संचालित करने में सक्षम बनाता है. इस लिस्ट में चीन का नाम भी शामिल है. चीन की टाइप 093A और टाइप 094 पनडुब्बिया एडवांस्ड परमाणु इंजन से लैस हैं. इसी के साथ फ्रांस ब्रिटेन और भारत भी इस सूची में अपनी जगह रखते हैं.
गैर परमाणु पनडुब्बी इंजन
गैर परमाणु इंजनों का उत्पादन और भी ज्यादा व्यापक है. स्वीडन ने स्टर्लिंग इंजन आधारित एआईपी प्रणालियों का बीड़ा उठाया हुआ है. इसकी मदद से गोटलैंड श्रेणी जैसी पनडुब्बियां हफ्तों तक पानी के नीचे रह सकती हैं. इसी के साथ जर्मनी अपने टाइप 212A और 212CD पनडुब्बियों में हाइड्रोजन ईंधन कोशिकाओं का इस्तेमाल करता है. वहीं जापान अपनी सोरयू श्रेणी और ताइगेई श्रेणी की पनडुब्बियों के लिए लिथियम आयन बैटरियों का इस्तेमाल कर रहा है.
अगर स्पेन की बात करें तो बायो एथेनॉल आधारित हाइड्रोजन ईंधन सेल प्रणाली S-80 श्रेणी की पनडुब्बियों को चला रही हैं. इसी के साथ दक्षिण कोरिया ने एआईपी और लिथियम आयन तकनीक दोनों में भारी निवेश कर के अपनी जंग बोगो-III पनडुब्बियों को एडवांस टेक्नोलॉजी से लैस किया है. इसी के साथ ब्राजील पारंपरिक स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों के साथ-साथ अपने खुद के परमाणु रिएक्टर भी विकसित कर रहा है और पाकिस्तान युआन श्रेणी जैसी लाइसेंस प्राप्त चीनी एआईपी पनडुब्बियों पर निर्भर है.
भारत की क्या है स्थिति
भारत भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के सहयोग से स्वदेशी दाब युक्त हल्के जल रिएक्टर बना रहा है. यह INS अरिहंत और INS अरीघाट जैसी पनडुब्बियों को शक्ति प्रदान करेगा. इसी के साथ भारत अपनी डीजल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के लिए वायु स्वतंत्र प्रणोदन प्रणालियों में भी निवेश कर रहा है. परमाणु पनडुब्बिया इंजन बनाने में सक्षम सिर्फ 6 देश में से एक के रूप में भारत ने अरिहंत श्रेणी और अरीघाट श्रेणी की पनडुब्बियों के विकास के जरिए स्वदेशी खासियत का प्रदर्शन किया है.
सिर्फ परमाणु प्रणोदन ही नहीं बल्कि भारत अपनी डिजिटल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों जैसे कि कलवरी श्रेणी के लिए एआईपी तकनीक को सक्रियता के साथ इस्तेमाल कर रहा है जो पानी के अंदर उनकी सहनशक्ति को बढ़ाती है और पता लगाने की क्षमता को कम करती है.
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