Creamy Layer: काफी लंबे समय से इस बात पर चर्चा चलती आ रही है कि क्या केंद्र सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग के क्रिमी लेयर के लिए आय सीमा बढ़ा सकती है या फिर नहीं. अब आखिरकार यह गुत्थी सुलझ चुकी है. केंद्र सरकार ने यह साफ तौर पर कह दिया है कि वह 8 साल पहले संशोधित की गई इस सीमा को बढ़ाने का समर्थन नहीं करती है. हालांकि तब से लेकर अब तक आय सीमा में दो बार संशोधन होना था लेकिन सरकार ने निष्पक्षता और असमानता की चिंताओं का हवाला देते हुए मौजूदा आंकड़े बरकरार रखने का फैसला लिया है. इसी बीच आइए जानते हैं कि क्रीमी लेयर क्या होती है और इसकी आय सीमा का निर्धारण कैसे किया जाता है.
क्रीमी लेयर को समझना
दरअसल क्रीमी लेयर में ओबीसी वर्ग के वे लोग आते हैं जो समृद्ध और उच्च शिक्षित है और इसलिए आरक्षण लाभों के लिए पात्र नहीं है. इसका यह उद्देश्य है कि आरक्षण प्रणाली अपने इच्छित उद्देश्य की पूर्ति करे और पहले से ही संपन्न लोगों के बजाए हाशिए पर रहने वाले और सामाजिक रूप से पिछड़े परिवारों को लाभ पहुंचाए. क्रीमी लेयर की पहचान करके और उन्होंने बाहर करके सरकार का उद्देश्य ऐसी न्याय व्यवस्था को बनाना है जो जरूरतमंद लोगों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता दे.
क्रीमी लेयर की आय का निर्धारण
फिलहाल क्रीमी लेयर में शामिल होने के लिए वार्षिक परिवारिक आय सीमा ₹8 लाख है. यह आकलन माता-पिता की सकल वार्षिक आय पर आधारित है और इसमें वेतन, कृषि गतिविधि और बाकी तरीकों से होने वाली आय शामिल है. हालांकि माता-पिता के वेतन और कृषि आय को वार्षिक आय की गणना में नहीं जोड़ा जाता, लेकिन बाकी तरह से होने वाली आय को जोड़ा जाता है. इसके अलावा यदि कोई माता-पिता ग्रुप ए के सरकारी पद पर हैं तो उनके बच्चे आय की परवाह के बिना खुद ही क्रीमी लेयर में आ जाते हैं.
इसी के साथ लगातार 3 सालों तक ₹8 लाख की सीमा से ज्यादा आय वाले परिवारों को भी क्रीमी लेयर का हिस्सा माना जाता है. मौजूदा आय सीमा को कायम रखते हुए केंद्र सरकार यह चाहती है कि आरक्षण का लाभ सबसे वंचित ओबीसी परिवारों तक पहुंचता रहे. केंद्र सरकार का मानना है कि आय सीमा को बढ़ाने से ओबीसी परिवारों का केवल एक छोटा वर्ग ही इस फायदे को उठा पाएगा.
इसी के साथ गरीब ओबीसी के लिए सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ना और भी मुश्किल हो जाएगा. केंद्र सरकार के मुताबिक कम आय सीमा बनाए रखने से यह सुनिश्चित होता है कि धनी ओबीसी परिवार आरक्षण के लाभों से वंचित रहें जिससे लाभ सिर्फ उन लोगों तक पहुंचे जिन्हें सही में उसकी जरूरत है.
ये भी पढ़ें: गुप्त काल को क्यों कहा जाता है भारत का 'स्वर्णिम काल', उस समय कौन सी करेंसी चलती थी?