Gupta Period: गुप्त काल जो लगभग 320 से 550 ई. तक चला था भारत के स्वर्ण युग के रूप में मशहूर है. इस युग में कला, साहित्य, विज्ञान और संस्कृति में काफी ज्यादा प्रगति हुई थी. राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक समृद्धि और बौद्धिक विकास के मिश्रण ने भारत को काफी ज्यादा समृद्ध बनाया था. इस काल की विरासत आज भी भारतीय संस्कृति को काफी ज्यादा प्रभावित करती है. आज हम जानेंगे कि गुप्त काल को स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है और साथ ही यह भी कि उस समय कौन सी मुद्रा चलती थी.

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गुप्त काल के दौरान कला का विकास

गुप्त काल को भारत का स्वर्णिम काल इसलिए कहा जाता है क्योंकि उस युग में भारत ने कला, साहित्य, विज्ञान और संस्कृति में काफी ज्यादा प्रगति की थी. गुप्त काल के दौरान कला और स्थापत्य कला काफी ऊंचाइयों पर पहुंची थी. शासक मूर्ति कला, चित्रकला और मंदिर निर्माण के महान संरक्षक थे. आपको बता दें कि देवगढ़ के दशावतार मंदिर की जटिल नक्काशी और अजंता की गुफाओं के भित्ति चित्र गुप्त काल की कला के सबसे बड़े उदाहरण हैं. गुप्त काल से शुरू हुई कृतियों की यह कला सिर्फ सुंदर प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं थी, बल्कि इसने आने वाले शताब्दी में भारतीय कला के लिए एक नींव भी रखी.

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साहित्यिक उपलब्धियां 

इस काल में साहित्य का जन्म हुआ. महान कवियों और नाटककारों खास तौर से कालिदास ने काफी शानदार रचनाएं की. उनके नाटकों और कविताओं जिनमें अभिज्ञान शाकुंतलम और मेघदूतम शामिल हैं, आज भी पढ़ें जाते हैं और उनकी कविताओं की समझ और मानवीय भावनाओं के शानदार ज्ञान के लिए उनकी प्रशंसा की जाती है. इस काल में जो साहित्यिक समृद्धि हुई है उसने भारत की सांस्कृतिक पहचान में एक बड़ा योगदान दिया है. 

विज्ञान और गणित में प्रगति 

गुप्त काल में वैज्ञानिक और गणितीय प्रगति भी हुई है. आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे विद्वानों ने गणित, खगोल विज्ञान, धातु विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में अपना बड़ा योगदान दिया है. आर्यभट्ट ने शून्य की खोज की और साथ ही यह भी प्रतिपादित किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है. इसी के साथ वराहमिहिर की रचनाओं ने ज्योतिष और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में विकास किया.

शिक्षा के केंद्र 

गुप्त काल के दौरान शिक्षा का भी विकास हुआ और नालंदा विश्वविद्यालय जैसे संस्थान शिक्षा के बड़े केंद्रों के रूप में उभरे. आपको बता दें कि पूरी एशिया से विद्वान दर्शन, खगोल विज्ञान, चिकित्सा और साहित्य का अध्ययन करने भारत आए.

इसी के साथ गुप्त काल में व्यापार, वाणिज्य और कृषि को भी प्रोत्साहन मिला. इस आर्थिक स्थिरता ने धन संचय और कला, साहित्य और शिक्षा के संरक्षण को संभव किया. यही वजह है कि इस काल को स्वर्ण युग का दर्जा मिला.

गुप्त काल में मुद्रा 

गुप्त काल में मुद्रा का चलन भी था. अलग-अलग तरह के सिक्के प्रचलन में थे. सोने के सिक्के जिन्हें दिनारा कहा जाता था काफी शानदार तरीके से डिजाइन किए गए थे और साम्राज्य की समृद्धि के प्रतीक थे. इसी के साथ चांदी के सिक्के जिन्हें रूपक कहा जाता था सबसे पहले चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा ही जारी किए गए थे. तांबे के सिक्के कुमार गुप्त के शासनकाल में प्रचलित हुए.

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