बीते दिन केरल के रहने वाले एक मुस्लिम शख्स की प्रॉपर्टी बंटवारे को लेकर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है. इस याचिका में पूछा गया है कि क्या मुस्लिम समुदाय बिना अपनी धार्मिक आस्था को छोड़ते हुए संपत्ति का बंटवारा शरीयत की बजाय शरीयत के बजाय धर्मनिरपेक्ष भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत कर सकता है.
इस याचिका में यह भी मांग की गई है कि मुस्लिमों की पैतृक संपत्तियों और स्व-अर्जित संपत्तियों को धर्मनिरपेक्ष भारतीय उत्तराधिकार कानून के दायरे में लाया जाए. साथ ही इससे उनकी आस्था पर कोई असर न पड़े. इस मामले को देखते हुए यह भी जान लेते हैं कि आखिर हिंदुओं और मुसलमानों में संपत्ति का बंटवारा कैसे होता है.
मुस्लिमों में संपत्ति का बंटवारा
मुस्लिम समुदाय में संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट 1937 यानि शरिया के तहत होता है. मुस्लिमों में जन्म के समय से ही उनको संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता है. इस कानून के अनुसार संपत्ति के वारिस की मौत के बाद उसके उत्तराधिकारी उसका अंतिम संस्कार करें, सारे कर्जे चुकता करें, तब जाकर संपत्ति की कीमत या फिर वसीयत तय होती है. इस्लाम में कानून कहता है कि मुस्लिम शख्स अपनी एक तिहाई संपत्ति का हिस्सा किसी को भी दे सकता है, जबकि बाकी हिस्सा परिवार में बांटा जाता है.
महिलाओं के नहीं मिलता बराबर का हक
अगर संपत्ति के वारिस के मरने से पहले वसीयतनामा नहीं लिखा गया है तो संपत्ति का बंटवारा कुरान और हदीस में बताए गए नियमों के अनुसार होता है. लेकिन इस कानून का दुरुपयोग यह है कि इसमें पुरुषों की तुलना में महिलाओं को संपत्ति में बराबरी का हक नहीं मिलता है. इसे ऐसे समझिए की पिता की संपत्ति में बेटी को बेटे की तुलना में आधा हक मिलता है. अगर एक बेटा और बेटी है तो दो तिहाई हिस्सा बेटे को और एक तिहाई बेटी को मिलता है. वहीं पत्नी को एक चौथाई हिस्सा ही मिलता है, बच्चों को ⅛वां हिस्सा मिलता है. अगर एक से ज्यादा बीवियां हैं तो 1/16वां हिस्सा ही मिलेगा. वहीं एक मां को मृत बेटे की संपत्ति से 1/6वां हिस्सा मिलता है.
हिंदुओं में संपत्ति का बंटवारा
हिंदुओं में तो आमतौर पर जब तक परिवार का मुखिया जिंदा है, तब तक बंटवारे की स्थिति को लेकर विवाद आमतौर पर कम ही होता है. लेकिन परिवार के मुखिया की मृत्यु के बाद यह सामान्य है कि भाइयों और दावा करने की स्थिति में बहनों के बीच संपत्ति को लेकर विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. लेकिन अगर पहले से बंटवारा हो गया हो तो वसीयत के तहत परिवार का मुखिया अपने बच्चों या परिवार के किसी भी प्रिय को अपनी संपत्ति सौंप देता है. इसमें उन लोगों के नाम दर्ज होते हैं, जिनको कि संपत्ति दी जानी है.
किसे दी जाती है संपत्ति
अगर परिवार का मुखिया पहले से बंटवारा करके नहीं गया है, तब संपत्ति उत्तराधिकार कानून के तहत बांटी जाती है. उत्तराधिकार कानून के तहत मुखिया की मृत्यु के बिना संपत्ति को अधिनियम की कक्षा-1 के उत्तराधिकारियों को दिया जाता है. अगर कक्षा 1 में उल्लेखित अधिकारी नहीं है, तब ऐसी स्थिति में अधिनियम के कक्षा-2 के वारिस को संपत्ति दिए जाने का प्रावधान होता है. हालांकि हिंदुओं में संपत्ति के बंटवारे को लेकर पेशेवर की मदद लेना बेहतर होता है.
यह भी पढे़ें: क्या होता है डिजिटल रेप, इस केस में आरोपी को कितनी मिलती है सजा?