अधिकांश लोगों ने सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग जरूर देखी होगी. दुनिया की कई बड़ी स्पेस एजेंसियां समय-समय पर सैटेलाइट लॉन्च करती रहती हैं. अभी हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 17 साल पहले लॉन्च की गई कार्टोसैट-2 सैटेलाइट को अंतरिक्ष से पृथ्वी के वायुमंडल में सफलतापूर्वक गिरा दिया है. बता दें कि 14 फरवरी 2024 को ये सैटेलाइट धरती के वायुमंडल में प्रवेश किया और हिंद महासागर में गिरकर खत्म हो गया था. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अंतरिक्ष से धरती पर सैटेलाइट को वापस कैसे लाया जाता है. आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे. 


कचरा कम करना


दुनिया की बहुत सारी स्पेस एजेंसियों ने अंतरिक्ष में सैटेलाइट को भेजा हुआ है. लेकिन एक समय के बाद जब इन सैटेलाइट का काम खत्म हो जाता है या इनका जीवन पूरा हो जाता है. उस वक्त अधिकांश स्पेस एजेंसी  इन्हें अतंरिक्ष से बाहर निकालना चाहती हैं, क्योंकि इससे अंतरिक्ष में कचरा कम होगा. 


सैटेलाइट में ईंधन


नासा के मुताबिक जिन सैटेलाइट में थोड़ा बहुत ईंधन बचा होता है. उन सैटेलाइट को पृथ्वी की तरफ लाया जाता है, जब ये सैटेलाइट पृथ्वी की तरफ आते हैं, उस वक्त इनकी स्पीड इतनी तेज कर दी जाती है, जिससे घर्षण के कारण सैटेलाइट जलकर खत्म हो जाता है..


पृथ्वी की कक्षा से बाहर


नासा ने बताया है कि जिन सैटेलाइट में ईंधन नहीं बचा होता है. ऐसे सैटेलाइट के साथ कोशिश की जाती है कि इन्हें पृथ्वी की कक्षा से बाहर कर दिया जाए. वैज्ञानिक ऐसे सैटेलाइट को पृथ्वी की कक्षा से दूर करके सैटेलाइट को विस्फोट कर देते हैं. वैज्ञानिक ऐसी जगहों पर इन्हें विस्फोट करते हैं, जहां पर जलने के बाद भी इनका हिस्सा समुंद्र में गिरे. क्योंकि जिन सैटेलाइट्स में ईंधन कम होता है, उन्हें पृथ्वी की ओर लाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है.


बता दें कि अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि शुरुआत में कार्टोसैट-2 को स्वाभाविक रूप से नीचे आने में लगभग 30 साल लगने की उम्मीद थी. हालांकि इसरो ने अंतरिक्ष मलबे को कम करने पर अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए बचे हुए ईंधन का उपयोग करके इसकी परिधि को कम करने का विकल्प चुना था. क्योंकि संयुक्त राष्ट्र समिति और अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति जैसे संगठन हमेशा कहते हैं कि अतंरिक्ष में मलबा कम होना चाहिए. 


 


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