भारत की इकोनॉमी को डेड इकोनॉमी कहने वाले अब खुद मुश्किल में हैं. अमेरिका की अर्थव्यवस्था की हालत इन दिनों काफी खस्ता बताई जा रही है. यह हम नहीं कह रहे बल्कि हाल ही में मूडीज की जारी की गई रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार हालात इतने नाजुक हैं कि आने वाले समय में बड़ी चुनौती देखने को मिल सकती है.

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आखिर किसी भी देश की इकोनॉमी के मंदी में जाने का पता कैसे चलता है. अक्सर लोग सोचते हैं कि मंदी का मतलब केवल बेरोजगारी या उत्पादन में गिरावट है. लेकिन इसके और भी कई संकेत होते हैं. इन संकेतों को देखकर ही विशेषज्ञ इस बात को तय करते हैं कि कोई देश मंदी की चपेट में है या नहीं. चलिए आपको बताते हैं कि कोई देश मंदी की चपेट में है कैसे पता चलता है.

कैसे पता चलता है देश में मंदी आने वाली है?

किसी भी देश की इकोनॉमी का सबसे बड़ा पैमाना उसका सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP होता है. और यही सबसे बड़ा आधार होता है जिससे यह पता लगाया जाता है कि कोई देश मंदी की चपेट में आने वाला है या नहीं. अगर किसी देश की GDP में लगातार दो तिमाही तक गिरावट नजर आती है. तो फिर इसे मंदी का संकेत माना जाता है. इसके साथ ही इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन, सर्विस सेक्टर और मैन्युफैक्चरिंग की ग्रोथ भी मंदी की स्थिति तय करने में अहम भूमिका निभाती है. यानी कि GDP और उत्पादन में लगातार गिरावट मंदी की सबसे बड़ी निशानी कही जाती है. 

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यह दो फैक्टर्स भी अहम होते हैं

किसी देश में यह पता लगाना है कि वहां मंदी आने वाली है या नहीं. तो इसके लिए उस देश में बढ़ती बेरोजगारी और घटता निवेश देखकर भी पता लगाया जा सकता है. जब कंपनियां घाटे में जाती हैं. तो वह नई भर्तियां रोक देती हैं और कर्मचारियों की छंटनी भी करने लगती हैं. इससे बेरोजगारी दर बढ़ जाती है. दूसरी ओर निवेशक नए प्रोजेक्ट या बिजनेस में पैसा लगाने से बचते हैं. 

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क्योंकि उन्हें भविष्य में मुनाफा नजर नहीं आता. यही कारण है कि निवेश में गिरावट और रोजगार की कमी को मंदी का संकेत माना जाता है. इसके साथ ही शेयर बाजार की लगातार गिरावट और उपभोक्ताओं की खरीदने की क्षमता में कमी भी इस ओर इशारा करती है कि अर्थव्यवस्था पटरी से उतर रही है. इन संकेतों को देखकर ही किसी देश की आर्थिक हालत का सही आंकलन किया जाता है.

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