आज यानी 23 मार्च को शहीद भगत सिंह की पुण्यतिथि है. इस खास दिन हर साल 23 मार्च को पंजाब राज्य में भारत और पाकिस्तान सीमा पर स्थित हुसैनीवाला गांव में लोग भारत की आजादी की लड़ाई के तीन नायकों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहीदी का सम्मान करने के लिए इकट्ठा होते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत ने फिरोजपुर जिले के इस एक गांव को पाने के लिए 12 गांव को छोड़ दिया था, जो पाकिस्तान में शामिल हो गए थे. बंटवारे के समय जब देश ने अपने शहीद वीर सपूतों के सम्मान के लिए एक गांव के बदले पाकिस्तान को 12 गांव दिए थे. 


हुसैनीवाला गांव


भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु को 24 मार्च को फांसी दी जानी थी. लेकिन अंग्रेजों ने लोगों के विद्रोह के डर उन्हें निर्धारित समय से 11 घंटे पहले फांसी दे दी थी. आज यानी 23 मार्च को भगत सिंह की पुण्यतिथि है. बता दें कि 23 मार्च 1931 की शाम लाहौर जेल में सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी. इतिहास के मुताबिक तीनों शहीदों का अंतिम संस्कार पहले जेल में ही होना था, लेकिन बाद में अंग्रेजों को लगा कि जेल से उठने वाला धुंआ देखकर जनता भड़क सकती है, इसलिए रातों रात जेल के पिछवाड़े की दीवार को तोड़ा गया था और ट्रक के जरिए तीनों के पार्थिव शरीर को बाहर ले जाकर उसका अंतिम संस्कार किया गया था. 


बता दें कि फिरोजपुर जिले के हुसैनीवाला गांव  में सतलज नदी के किनारे अंग्रेजों ने गुप्त रूप से भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का अंतिम संस्कार किया था. इतिहास के मुताबिक अंग्रेजों ने हमारे शहीदों का अंतिम संस्कार अच्छे से नहीं किया था और सूरज निकलने के डर से उनके पार्थिव शरीर के बचे अवशेष को नदी में बहा दिया था. लेकिन गांव वालों ने फिर शहीदों का सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार किया था. यह स्थल आज एक स्मारक है, जिसे ‘प्रेरणा स्थल’ कहा जाता है.
 
भारत-पाकिस्तान बंटवारा


एक रिपोर्ट के मुताबिक विभाजन के बाद हुसैनवाला पाकिस्तान में चला गया था. लेकिन भारत सरकार ने पाकिस्तान को 12 गांव दिए थे. वहीं वीरों की विरासत का सम्मान करने के लिए हर साल 23 मार्च को यहां शहीद मेला लगता है. हुसैनीवाला गांव की सीमा पाकिस्तान के गांव गंडा सिंह वाला के साथ सीमा साझा करता है. इस गांव का नाम एक मुस्लिम पीर हुसैनी बाबा के नाम पर रखा गया था.


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