दुनिया में जब भी भारत की आजादी की बात होगी, उस वक्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अद्भुत योगदान देने वाले क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह को हमेशा याद किया जाएगा. आज यानी 23 मार्च को शहीद भगत  सिंह की पुण्यतिथि है. ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि आज जिस उम्र में बच्चे किताबों और फोन तक सीमित हैं. उस उम्र में भगत सिंह ने देश की आजादी का सपना देखा था और उसके लिए शहीद हुए थे. आज शहीद भगत सिंह की पुण्यतिथि पर जानते हैं, उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें.

  


देशभक्त परिवार में जन्म


भगत सिंह का जन्म पंजाब के लयालपुर के बांगा (अब पाकिस्तान में) गांव के एक सिख परिवार में 28 सितंबर 1907 को हुआ था. हालांकि एक धारणा के मुताबिक उनकी जन्मतिथि 27 सितंबर को मानी जाती है. उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था. पिता किशन सिंह अंग्रेजों और उनकी शिक्षा को नापसंद करते थे. उनके चाचा खुद एक क्रांतिकारी थे. भगत सिंह की शुरुआती पढ़ाई बांगा में गांव के स्कूल में हुई थी. इसके बाद लाहौर के दयानंद एंग्लो-वैदिक स्कूल में उनका दाखिला कराया गया था.


देशप्रेम 


भगत सिंह के मन में आजादी और देश प्रेम के सोच सबसे पहले उनकी मां से मिली थी. उनके बाल मन में पिता और चाचा के बीच बातचीत को लेकर सवाल उठते थे. ऐसे में उनकी मां ही उनको सारे सवालों का जवाब दिया करती थी. मां की शिक्षाएं और उनके प्रति प्रेम भगत सिंह के पूरे जीवनकाल में दिखाई देता था.


बता दें कि भगत सिंह लाला लालपत राय को बहुत मानते थे. लालाजी का भी भगतसिंह को बहुत ही स्नेह दिखाया करते थे. लालाजी एक तरह से भगत सिंह के परिवार के सदस्य के तरह थे. लालाजी की आर्यसमाजी सोच का असर भी भगतसिंह पर देखने को मिलता था. वहीं चाचा अजीत सिंह के संपर्क में आने से उन्हें गदर आंदोलन की जानकारी मिली थी. गांधी के विचार असहयोग आंदोलन से काफी पहले देश भर में फैल रहे थे. लेकिन जलियांवाला बाग हत्याकांड का भगतसिंह के ऊपर बहुत असर पड़ा था. ये ही कारण है कि उनके जीवन से अहिंसा के सारे रास्ते हो गये थे. 


क्रांतिकारी 


इतिहास बताते हैं कि गांधी जी के असहयोग आंदलोन के वापस लिए जाने के बाद भगत सिंह ने क्रांतिकरियों का रास्ता अपनाते हुए सचिंद्रनाथ सान्याल और राम प्रसाद बिस्मिल की हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) की सदस्यता ले ली थी. हालांकि इसकी कोई विशेष विचारधारा नहीं थी, बल्कि अंग्रेजों से आजादी हासिल करने की तीव्र छटपटाहट थी.


रूस की क्रांति


इसके अलावा 1924 में रूस में बोल्शेविक क्रांति ने देश के बहुत क्रांतिकारियों को आकर्षित किया था. उन्हें लगा कि क्रांति हासिल करने का यह एक कारगर तरीका है. इसलिए भगत सिंह सहित समेत बहुत लोग दिल्ली में जमा हुए थे और उन्होंने 1928 में अपने संगठन का नाम एचआरए से हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) रखा था. हालांकि काकोरी ट्रेन एक्शन के बाद संगठन नाम बदलने की भी जरूरत पैड़ गई थी. 


किताबों का शौक


बता दें कि भगत सिंह को जब भी समय मिलता था, वो किताब जरूर पढ़ते थे. भगत सिंह ने अक्टूबर क्रांति और लेनिन के बारे में काफी कुछ पढ़ा था और उससे प्रभावित भी हुए थे. कई मौकौं पर उन्होंने राष्ट्रवाद, अराजकता, अहिंसा, आतंकवाद, धर्म, धार्मिकता और सम्प्रदायवाद की आलोचना की थी. इतिहास के मुताबिक वे अपने अध्ययन से इस नतीजे पर पहुंचे थे कि एक क्रांतिकारी के लिए तार्किकता और स्वतंत्र विचारशीलता बहुत जरूरी है. इसी वजह से वो ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकारना नहीं चाहते थे और अज्ञानता के खिलाफ संघर्ष की पैरावी करते थे. हालांकि वे बचपन में एक आर्यसमाजी के तौर पर गायत्री मंत्र पढ़ा करते थे, लेकिन बाद में आदर्शवादी क्रांतिकारी, फिर मार्क्सवादी बनते हुए एक विचारधारा के बंधन से मुक्त क्रांतिकारी हो गए थे.


शहीदी दिवस


आज यानी 23 मार्च को भगत सिंह की पुण्यतिथि है. बता दें कि 23 मार्च 1931 की शाम लाहौर जेल में सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी. हालांकि भगत सिंह और उनके साथियों को 24 मार्च को फांसी दी जानी थी, लेकिन उन्हें निर्धारित समय से 11 घंटे पहले फांसी दे दी गई थी. अंग्रेजों को ये डर था कि जनता विद्रोह कर सकती है, इसलिए उन्होंने 23 मार्च को ही भगत सिंह को फांसी पर लटका दिया था. वहीं तीनों शहीदों का अंतिम संस्कार पहले जेल में ही होना था, लेकिन बाद में अंग्रेजों को लगा कि जेल से उठने वाला धुंआ देखकर जनता उत्तेजित ना हो,इसलिए रातों रात जेल के पिछवाड़े की दीवार को तोड़ा गया और ट्रक के जरिए तीनों के पार्थिव शरीर को बाहर ले जाकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया था. 


 


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