क्रिकेट की दुनिया में कई ऐसे सितारे हैं जिनकी पहचान सिर्फ मैदान तक सीमित नहीं रहती, बल्कि उनकी जिंदगी भी लोगों के लिए चर्चा का विषय बन जाती है. अफगानिस्तान के स्टार क्रिकेटर राशिद खान भी ऐसे ही खिलाड़ी हैं. अपनी घातक लेग स्पिन गेंदबाजी से दुनिया के बड़े-बड़े बल्लेबाजों को चकमा देने वाले राशिद खान आज टी20 क्रिकेट के सबसे खतरनाक गेंदबाजों में गिने जाते हैं.
आईपीएल, बीबीएल और दुनिया की तमाम लीगों में खेल चुके राशिद ने अफगानिस्तान को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में नई पहचान दिलाई है. लेकिन जहां एक तरफ यह लोकप्रियता उन्हें स्टार बनाती है, वहीं दूसरी ओर यही शोहरत उनकी निजी जिंदगी को बेहद मुश्किल भी बना देती है.
आम लोगों की तरह नहीं जी सकते राशिद खान
हाल ही में इंग्लैंड के पूर्व कप्तान केविन पीटरसन के साथ बातचीत के दौरान राशिद खान ने अपनी जिंदगी से जुड़ा एक ऐसा सच बताया, जिसे सुनकर हर कोई हैरान रह गया. जब पीटरसन ने उनसे पूछा कि क्या वह काबुल में आम लोगों की तरह सड़कों पर घूम सकते हैं, तो राशिद का जवाब था नहीं, राशिद खान ने साफ तौर पर बताया कि अफगानिस्तान में उन्हें बुलेटप्रूफ कार में सफर करना पड़ता है. यह कोई शौक या लग्जरी नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान जैसे हालात वाले देश में गलत समय पर गलत जगह होना किसी के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है.
राशिद खान की बुलेटप्रूफ कार की कीमत कितनी?
हर गाड़ी को बुलेटप्रूफ नहीं बनाया जा सकता, इसके लिए गाड़ी का मजबूत होना जरूरी होता है, ताकि अतिरिक्त वजन को संभाला जा सके. ऐसे में ज्यादातर SUV गाड़ियों को ही बुलेटप्रूफ किया जाता है. बुलेटप्रूफ कार की कीमत सुरक्षा के स्तर और गाड़ी के मॉडल पर निर्भर करती है. सिर्फ गोलियों से सुरक्षा के लिए 20 से 50 लाख रुपये, शीशे बुलेटप्रूफ कराने पर 5 लाख रुपये तक और लग्जरी कार (BMW, Mercedes) की पूरी बुलेटप्रूफिंग 3 से 4 करोड़ रुपये तक लग सकते हैं. अगर गाड़ी को ग्रेनेड या रॉकेट लॉन्चर से बचाने के लिए तैयार किया जाए तो खर्च और भी ज्यादा बढ़ सकता है.
इसे बनवाने का तरीका?
बुलेटप्रूफ कार बनाने की प्रक्रिया काफी तकनीकी होती है. इससे सबसे पहले गाड़ी की कैटेगरी और क्षमता जांची जाती है. इंजन को छोड़कर लगभग पूरी बॉडी बदली जाती है, दरवाजों, छत और फर्श में बुलेटप्रूफ स्टील लगाया जाता है. विंडशील्ड और खिड़कियों में मोटे बुलेटप्रूफ शीशे लगाए जाते हैं. टायर ऐसे लगाए जाते हैं जो गोली लगने के बाद भी कुछ दूरी तक चल सकें. इस पूरी प्रक्रिया के बाद गाड़ी का वजन 800 से 1000 किलो तक बढ़ जाता है, जिससे उसकी स्पीड और माइलेज कम हो जाते हैं.
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