UP News: उत्तर प्रदेश, जो देश की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य है, आज एक मौन क्रांति का गवाह बन रहा है. यह क्रांति किसी हथियार या आंदोलन से नहीं, बल्कि एक छोटे से प्लास्टिक कार्ड (ATM) और पासबुक से आई है. राज्य में महिलाओं को बैंकिंग प्रणाली से जोड़कर उन्हें 'अनबैंक्ड' (बैंक विहीन) से 'बैंक एबल्ड' (बैंक सक्षम) बनाने की दिशा में अभूतपूर्व प्रगति हुई है.

Continues below advertisement

आंकड़ों की जुबानी बदलाव की कहानी

प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) के तहत उत्तर प्रदेश में करोड़ों महिलाओं के खाते खोले गए हैं. आंकड़ों के अनुसार, यूपी में जन धन खातों की संख्या देश में सबसे अधिक है, जिनमें लगभग 50% से अधिक खाते महिलाओं के हैं. यह केवल एक संख्या नहीं है, बल्कि उस भरोसे का प्रतीक है जिसने महिलाओं को अपनी छोटी-छोटी बचत को सुरक्षित रखने का स्थान दिया है.

Continues below advertisement

बी.सी. सखी: बैंकिंग की नई पहचान

उत्तर प्रदेश सरकार की 'बी.सी. सखी' (Banking Correspondent Sakhi) योजना ने इस समावेशन को धरातल पर उतारा है. आज राज्य के सुदूर गांवों में महिलाएं बैंक जाने के लिए मीलों पैदल नहीं चलतीं, बल्कि बैंक खुद उनके घर तक आता है. हजारों महिलाएं बी.सी. सखी के रूप में प्रशिक्षित होकर गांव-गांव में डिजिटल लेनदेन कर रही हैं. इससे न केवल बैंकिंग सेवाएं सुलभ हुई हैं, बल्कि इन महिलाओं को रोजगार भी मिला है.

सीधा लाभ हस्तांतरण (DBT) और सुरक्षा

वित्तीय समावेशन का सबसे बड़ा लाभ 'डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर' (DBT) के रूप में सामने आया है. वृद्धावस्था पेंशन, उज्ज्वला योजना की सब्सिडी और अन्य सरकारी लाभ अब सीधे महिलाओं के खातों में पहुंच रहे हैं. बीच के बिचौलियों के खत्म होने से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा है. अब उनके पैसे पर उनका अपना अधिकार है, जिससे परिवार के भीतर उनकी निर्णय लेने की क्षमता (Decision Making) मजबूत हुई है.

डिजिटल साक्षरता और चुनौतियां

हालांकि, बैंकिंग खातों की संख्या बढ़ी है, लेकिन डिजिटल साक्षरता अब भी एक चुनौती है. ग्रामीण इलाकों में कई महिलाएं आज भी स्मार्ट फोन या पिन (PIN) सुरक्षा के प्रति उतनी सजग नहीं हैं. सरकार और स्वयं सहायता समूह (SHGs) लगातार कार्यशालाओं के माध्यम से महिलाओं को साइबर फ्रॉड से बचने और मोबाइल बैंकिंग का उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

वित्तीय समावेशन केवल खाता खोलना नहीं है, बल्कि यह महिलाओं को मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाना है. उत्तर प्रदेश में "बैंकिंग द अनबैंक्ड" अभियान ने महिलाओं को साहूकारों के चंगुल से निकालकर औपचारिक ऋण प्रणाली से जोड़ा है. जब एक महिला आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती है, तो उसका प्रभाव पूरे परिवार और अंततः पूरे समाज पर पड़ता है.