फैजाबाद कभी अवध की राजधानी हुआ करता था. यह अपने इतिहास और विरासत के लिए जाना जाता है. यहां कई ऐतिहासिक इमारतें और नवाबों की हवेलियां मौजूद थीं, जो कि अब नहीं रहीं. लेकिन इन्हीं में से एक थी नवाब शुजा-उद-दौला की कोठी, जो कभी इस शहर की शान मानी जाती थी. शुजा-उद-दौला वही नवाब थे, जिन्होंने फैजाबाद को बसाया और इसे राजनीतिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया. लेकिन अब इसी कोठी का नामोनिशां मिटने जा रहा है और इसकी जगह बनने जा रही है एक नई इमारत, जिसका नाम है साकेत सदन.
कौन बनवा रहा साकेत सदन
दरअसल सैकड़ों साल के बाद यह ऐतिहासिक धरोहर जर्जर हालत में है और अब धीरे-धीरे इसका नामोनिशां मिटने की ओर है. इसीलिए उत्तर प्रदेश सरकार ने इस जगह पर एक नई इमारत साकेत सदन बनाने का काम शुरू कर दिया है. खबरों की मानें तो इसका लगभग 60 प्रतिशत काम पूरा भी हो चुका है. सरकार का प्लान है कि इस कोठी की जगह एक संग्रहालय बनाया जाए. यह संग्रहालय खासतौर से हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए होगा, जहां पर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां और धार्मिक चीजें रखी जाएंगी, ताकि अयोध्या आने वाले श्रद्धालु यहां रुककर इतिहास और आस्था दोनों से जुड़ सकें.
नवाब की कोठी का इतिहास
इतिहासकारों की मानें तो शुजा-उद-दौला ने 18वीं शताब्दी में फैजाबाद को अपनी राजधानी बनाया था. उनके समय में यह शहर सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत समृद्ध हुआ करता था. कोठी में दरबार लगता था, वहीं से उनका शासन चलता था और यहीं पर कई अहम फैसले लिए जाते थे. यही वजह है कि यह इमारत सिर्फ एक महल नहीं, बल्कि अवध की पहचान हुआ करती थी.
आज के वक्त में हालात यह हैं कि लोग इस कोठी को भूल रहे हैं और नई पीढ़ी को भी इसके महत्व के बारे में बहुत कम जानकारी है. स्थानीय लोग कहते हैं कि सरकार और प्रशासन ने अगर समय रहते इसकी देखरेख की होती, तो यह आज भी यह सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित कर सकती थी.
मिट रहा कोठी का नामोनिशां
अब यह ऐतिहासिक कोठी अपने आखिरी समय से गुजर रही है. लंबे समय से रखरखाव की कमी और प्रशासनिक लापरवाही के कारण यह इमारत धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो गई है. दीवारों पर दरारें, टूटी छत और जर्जर ढांचा इस बात का सबूत हैं कि हमारी धरोहरों को बचाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए. फैजाबाद का नाम अब अयोध्या हो चुका है और शहर का ध्यान राम मंदिर जैसी धार्मिक धरोहरों पर केंद्रित हो गया है. ऐसे में नवाब की कोठी जैसी ऐतिहासिक इमारतों का महत्व और भी पीछे छूट गया है.
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