Mughal Divorce Rules: इस्लाम और उससे जुड़े नियम-कायदों को लेकर दुनियाभर में बहस होती है. भारत में भी पिछले कुछ सालों में तीन तलाक से लेकर हलाला और हिजाब जैसे मुद्दे खूब चर्चा में रहे. तलाक को लेकर दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग नियम हैं, खासतौर पर मुस्लिम देशों में इसे लेकर अपने नियम बनाए गए हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुगलों के दौर में तलाक को लेकर क्या नियम थे? आइए जानते हैं... 


निकाहनामे की शर्तें
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक मुगलों के दौर में निकाहनामे के कई नियम थे. जिसमें पहला नियम ये था कि मौजूदा बीवी के रहते हुए शौहर दूसरा निकाह नहीं कर सकता है. शख्स अपनी बीवी से लंबे समय तक दूर नहीं रह सकता है और उसे अपनी बीवी को गुजारा भत्ता देना होगा. शौहर किसी दासी को अपनी पत्नी के रूप में नहीं रख सकता है.


कैसे होता था तलाक
अब अगर तलाक की बात करें तो बादशाह जहांगीर के एक फैसले का खूब जिक्र होता है. जहांगीर ने पत्नी की गैर जानकारी में शौहर की तरफ से तलाक की घोषणा को अवैध करार दिया था. उस दौर में भी पत्नी की तरफ से खुला या तलाक दिया जाता था. इसके अलावा निकाहनामे की शर्तों के टूटने पर शादी को खत्म घोषित किया जा सकता था. मुगलों के दौर में गरीबों में जब शादी होती थी तो जुबानी वादे ही माने जाते थे. अगर इन वादों का शौहर ने पालन नहीं किया तो ये तलाक का एक कारण बन सकता था. शादी खत्म होने की सूरत में बीवी को भत्ते देने की शर्त भी रखी जाती थी.


हालांकि शाही परिवार को निकाह और तलाक के लिए असीमित अधिकार दिए गए थे. कई बार देखा गया कि शाही परिवार के किसी सदस्य के लिए पूरी प्रक्रिया तीन तलाक से भी तेजी से पूरी कर दी गई.



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