Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे नजदीक आते ही भारत के सबसे मशहूर भूमिगत बाजारों में से एक फलौदी सट्टा बाजार एक बार फिर से सबका ध्यान खींच रहा है. एग्जिट पोल के बाद फलौदी सट्टा बाजार में हलचल मच चुकी है. नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों पर ही दांवों में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे हैं. लेकिन इसी बीच एक सवाल हमेशा उठता है कि फलौदी सट्टा बाजार का मालिक आखिर कौन है और वह कितना अमीर है.

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फलौदी सट्टा बाजार के मालिक के पीछे का रहस्य 

दरअसल सच्चाई यह है कि इस सट्टा बाजार का मालिक कोई एक व्यक्ति नहीं है. यह कोई कंपनी नहीं है, कोई कानूनी व्यवसाय नहीं है और ना ही कोई पंजीकृत संस्था है. दरअसल यह बाजार स्थानीय सट्टेबाजों, दलाल और व्यापारियों के एक भूमिगत नेटवर्क के रूप में काम करता है. जिसमें से हर किसी के अपने-अपने सट्टेबाज और ग्राहक होते हैं.

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फलौदी में सट्टा सदियों से चला आ रहा है और इसका संचालन समुदाय आधारित है. अब क्योंकि भारतीय कानून के तहत सट्टेबाजी अवैध है इस वजह से इसमें शामिल लोगों का कोई भी सार्वजनिक रिकॉर्ड या फिर वित्तीय खुलासा नहीं होता. इस वजह से मालिक के पास कितने पैसे हैं इस बारे में तो सवाल ही नहीं उठाता. यह बाजार गुमनामी में ही फलता फूलता है. 

कैसे हुई इस बाजार की शुरुआत 

फलौदी का सट्टा से जुड़ाव 19वीं सदी के अंत से है. इसकी शुरुआत राजनीति या फिर क्रिकेट से नहीं बल्कि बारिश से हुई थी. शुष्क थार रेगिस्तान में जहां पर बारिश का कोई भी अनुमान नहीं होता, बसे हुआ इस बाजार में स्थानीय लोग इस बात पर दांव लगाते थे कि बारिश कब और कहां पर होगी. यहां इस पर दांव लगाया जाता था कि क्या बारिश का झरना बहेगा, कोई तालाब उफान पर आएगा या बारिश की बूंदे टीन की छत पर गिरेंगी. 

लेकिन वक्त के साथ-साथ फलौदी सट्टेबाजी के क्षेत्र में नई चीजों का आगमन हुआ. जब क्रिकेट का रेडियो प्रसारण शुरू हुआ तो लोगों ने खेलों पर सट्टा लगाना शुरू कर दिया. बाद में 1970 के दशक में राजनीतिक चेतना के उदय और चुनाव कवरेज के तेजी से बढ़ने के साथ फलौदी को अपना नया पसंदीदा खेल मिल गया. यह खेल था चुनाव परिणामों पर सट्टा लगाना.

फलौदी में चुनावी सट्टा कैसे काम करता है 

फलौदी सट्टा बाजार स्टॉक एक्सचेंज की तरह ही काम करता है. बस फर्क इतना है कि यहां राजनीति के लिए काम होता है. यहां पर लोग अलग-अलग परिणामों पर दांव लगाते हैं, की कौन जीतेगा, किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी, सरकार कौन बनाएगा और यहां तक कि किस नेता को टिकट मिलेगा. इस दुनिया में दो शब्दों का इस्तेमाल होता है 'खाना' और 'लगाना'.

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