कोरोना महामारी जब फैली तो इसका जिम्मेदार सबसे ज्यादा चमगादड़ों को बताया गया. वैसे भी दुनिया में जब भी कोई बीमारी फैलती है तो उसकी ज्यादा संभावना यही रहती है कि वो चमगादड़ों से ही इंसानों तक पहुंचा हो. ऐसा इसलिए क्योंकि ये ठंडे खून वाले जीव हैं और इनके अंदर कोई वायरस तेजी से पनपता है. कोरोना के साथ साथ निपाह वायरस भी इन्हीं की वजह से इंसानों के बीच फैला. यही वजह है कि इंसान इनसे दूरी बना कर रखते हैं. जहां भी ये जीव दिखते हैं, इंसान उन्हें मार कर भगा देते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि बिहार में एक ऐसा अनोखा गांव है जहां चमगादड़ों की पूजा होती है.
कौन सा है ये गांव
ये खास गांव है बिहार के वैशाली जिले में. इस गांव का नाम है सरसई. बिहार में खासतौर से वैशाली जिले के आसपास जब भी कभी आप सरसई गांव का नाम लेंगे, लोग तुंरत आपसे पूछेंगे कि क्या आपको चमगादड़ों के गांव जाना है. दरअसल, इस गांव को इसके मूल नाम से ज्यादा लोग चमगादड़ों के गांव के नाम से जानते हैं. यह गांव इस वजह से पूरे देश में लोकप्रिय है. यहां तक कई लोग दूर दूर से इस गांव को देखने और यहां एक दो रात बिताने सिर्फ इसलिए आते हैं, ताकि वो देख सकें कि कैसे इस गांव में चमगादड़ रहते हैं.
क्यों होती है इस गांव में चमगादड़ों की पूजा?
एक ओर जहां पूरी दुनिया मानती है कि चमगादड़ रोगों के वाहक होते हैं और उनके माध्यम से रोग इंसानों में फैलते हैं, वहीं दूसरी ओर इस गांव के लोगों का मानना है कि चमगादड़ उनके लिए शुभ हैं. गांव में इनके रहने से कोई विपत्ति यहां नहीं आती. कहा तो यहां तक जाता है कि जैसे ही इस गांव में कोई भी अननोन आदमी आता है ये चमगादड़ शोर मचाने लगते हैं. वहीं जब इस गांव का कोई व्यक्ति रात में गांव में आता है तो ये चमगादड़ शांत रहते हैं. ऐसा लगता है जैसे ये गांव के सभी लोगों की गंध पहचानते हैं और जैसे ही इन्हें इस गांव के बाहर के किसी व्यक्ति की गंध महसूस होती है ये चिल्लाने लगते हैं.
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