एक प्रचलित कहावत है या फिर मुहावरा कह लें "खरबूजा खरबूजे को देख कर रंग बदलता है" शायद आपने सुना भी होगा जिसका साधारणतः प्रयोग यह बताने के लिए किया जाता है कि एक को देखकर या उसके असर से दूसरा भी उसी की तरह बन गया इसका सीधा मतलब यह है कि दूसरे को कुछ करते हुए देख कर उसकी नकल करते हुए ठीक वैसा ही काम करना.
यह कहावत आमतौर पर इंसानों के लिए तो बनाई ही गई है, वहीं इस मुहावरे का प्रयोग खरबूजों के लिए भी किया जाता है जिसका अर्थ है जब खरबूजे (फल) के पकने की ऋतु आती है तो एक खरबूजा जिसका फूल सबसे पहले आया था. वह सबसे पहले पकना शुरू हो जाता है और उसका रंग हरे से पीला में बदलने लगता है. जिसका साफ संकेत है कि खरबूजा पकना शुरू हो गया. इस प्रक्रिया के ठीक बाद अन्य खरबूजे भी पकने लगते हैं, शायद इसलिए भी इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है कि "खरबुजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है".
इसका कोई वैज्ञानिक आधार है?
वैज्ञानिक आधार की बात करें तो एथिलीन जो की एक गैसियस कंपाउंड होता जो फलों को पकाने में काम आता है. पके हुए फल इस एथिलीन कंपाउंड को रिलीज करते हैं जिसका उसके आस पास के फल पर भी असर पड़ता है. और कई बार ऐसा भी होता है की फल पकने और बहुत ज्यादा पक कर सड़ने लगते हैं तो उनके आस पास के फलों पर भी उनका साफ असर देखने को मिलता है जिसका मुख्य कारण एथिलीन जो की गैसियस कंपाउंड (प्लांट हार्मोन) है.
आपको बता दें कि ऐसे कई सारे फल हैं जो पकना शुरू होते हैं तो उनमें जो एथिलीन हार्मोन होता है जो की गैसियस फॉर्म में होता है और वो जब रिलीज होता है तो उसके आस पास के फल पर भी उसका असर दिखना शुरू हो जाता है, मतलब उसके आस पास वाले फल भी पकने लगते हैं. तो हम कह सकते हैं कि ये बात वैज्ञानिक रूप से भी सत्य है कि "खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है" जिसका मतलब है कि खरबूजे को देख कर खरबूजा पकने लगता है. एक पके हुए फल के वजह दूसरा फल भी पकने लगता है जिसका कारण एथिलीन हार्मोन है.
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