मुगल बादशाह की शान-ओ-शौकत और विलासितापूर्णं जीवन सिर्फ उनके खाने-पीने में नहीं बल्कि बल्कि पहनने में भी झलकता था. मुगल जब भारत आए तो उनके साथ शाही पाकशैली से लेकर शाही अंदाज में कपड़े और जूते पहनने के तरीके भी विकसित हुए. मुगलों की रईसी उनके भव्य वस्त्रों, रत्नजड़ित पगड़ी और खूबसूरत आभूषणों के लिए याद किया जाता है. मुगलों की शाही शान का प्रतीक उनके जूते भी थे. अकबर से लेकर जहांगीर तक यहां कि उनके दरबारियों द्वारा पहने जाने वाले जूते भी बड़े खास हुआ करते थे. हर मौके के अनुसार अलग जूतों से उनका शाही अंदाज झलकता था. 

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खास तरीके के जूते पहनते थे मुगल

मुगल सल्तनत न सिर्फ ताकतवर बल्कि दुनिया के अमीर राजवंशों में से एक हुआ करती थी. मुगल काल में लोग अपनी शाही पहचान के लिए कुछ खास चीजें पहनते थे. इसमें कोई दोराय नहीं कि उनके कपड़े खास होते थे, लेकिन उनके जूते भी खास हुआ करते थे. मुगल बादशाह और शहजादे खास तरीके के मोजरी जूते पहनते थे. मुगलों के वैभव और शान को ध्यान में रखते हुए ये खास मोजरी जूते उनके लिए बनाए जाते थे. ये ऊपर की ओर से मुड़े हुए नुकीले होते थे.

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यह था सबसे खास जूता

ये जूते काफी सजे-धजे हुए होते थे. इनमें सोने और चांदी के धागों का काम होता था, इनमें रत्न और जवाहरात भी जड़े हुए होते थे. ये मुगल बादशाहों की संपत्ति और शक्ति को प्रदर्शित करने का काम करते थे. ऊपर की ओर से मुड़े हुए जूतों को खुस्सा भी कहा जाता था. मुगल बादशाह खुद को आम लोगों से अलग दिखाने के लिए शाही जूतों का इस्तेमाल करते थे. मुगलों का सबसे खास जूता कफ्श कहा जाता था, जो कि मुगल शासकों के द्वारा ही पहना जाता था. 

सोने के धागों से होता खास काम

कफ्श एक आगे से बंद जूता हुआ करता था, जो कि खास मौकों पर ही पहना जाता था. यह हाई क्वालिटी वाले चमड़े से बना होता था. कफ्श मुगल बादशाह सिर्फ औपचारिक तौर पर इस्तेमाल करते थे. कफ्श को सोने-चांदी के धागों, मखमली अस्तर और रत्नों से सजाया जाता था. यह जूता मुगल बादशाहों की रईसी का प्रतीक हुआ करता था. एक और जूता होता था, जिसका नाम था खुर्द नौ. यह जूता हल्का और आरामदायक हुआ करता था, जिसे कि मुगल दरबार के अधिकारी, कवि और कलाकार जैसे लोग पहनते थे.

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